ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Wednesday, September 29, 2010
Saturday, September 4, 2010
"कलावाक्" समीक्षा
ललित कला अकादेमी द्वारा प्रकाशित "कलावाक्" की दैनिक हिंदुस्तान ने अपने एक अगस्त 2010 के "रविवासरीय" में समीक्षा प्रकाशित की है. आप भी करें आस्वाद...
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