ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Thursday, December 1, 2011

साहित्य अकादमी की यह यादगार यात्रा







विश्व कवि रविन्द्र नाथ टेगौर के 150 वें जन्मशती वर्ष पर केन्द्रीय साहित्य अकादेमी ने इस बार महत्वपूर्ण पहल की. भारतीय भाषाओं के लेखकों के एक दल को रविन्द्र की जन्भूमि जोडासाकुं, उनके द्वारा स्थापित शांति निकेतन विश्वविध्यालय ले जाया गया. राजस्थानी कवि के रूप में इस दल में सम्मलित हुआ. साहित्य अकादेमी सभागार में कविता पाठ भी किया. इससे पहले दो दिन शांति निकेतन, ठाकुरबाड़ी, कोलकता में देश भर से आये लेखको के साथ कभी न भुलाने वाले पलों को जिया. साहित्य अकादमी की यह यादगार यात्रा 16 से 18 नवम्बर को की गयी...जेहन में अभी भी बसी है यादें. छाया-चित्र फिर से यादें जीवंत कर रहे हैं...





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