ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Monday, August 20, 2012

‘कश्मीर से कन्याकुमारी’ पुस्तक का लोकार्पण


 सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रयाग शुक्ल ने नेशनल बुक ट्रस्ट, इण्डिया द्वारा प्रकाषित डॉ. राजेश कुमार व्यास की यात्रा संस्मरण पुस्तककश्मीर से कन्याकुमारीका लोकार्पण करते हुए कहा कि व्यास हिन्दी के ऐसे यात्रा संस्मरणकार हैं जिन्होंने यात्राओं को सर्वथा नयी दीठ से संस्कारित किया है। उन्होंने लेखक के अनुभवों, दृष्टि के साथ लिखने मंे बरती सहजता की सराहना करते हुए कहा कि हिन्दी में यात्रा संस्मरण विधा को आगे बढ़ाने में ऐसे ही लेखकों की जरूरत है।
इस अवसर पर पद्मश्री, संस्कृति मर्मज्ञ डॉ. मुकुन्द लाठ ने पर्यटन को देष के वैविध्य में एकता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि डॉ. व्यास की पुस्तक असल मंे दृष्य चित्र की तरह है। जो चीजें लेखक ने देखी है उसको एक चित्र के रूप में इसमें उकेरा गया है।  इसमें स्थान ही नहीं लोग, वहां का परिवेष आदि का आकलन भी है।
पदमश्री चन्द्रप्रकाश देवल ने कहा कि आम तौर पर वही दृष्य होते हैं जिसे लाखों लोग देखते है फिर भी एक लेखक का देखना इसलिये अलग होता है कि वह इतिहास, समाज शास्त्र आदि के नजरिये से नयी दृष्टि देता है। इस तरीके की दृष्टि संवेदना से ही आती है और डॉराजेश कुमार व्यास की यात्रा संस्मरण की यह पुस्तक इस लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि चूंकि डॉ. राजेश व्यास कला समीक्षक और संस्कृति मर्मज्ञ हैं, उनके यात्रा संस्मरण स्थान विशेष की यात्रा करने के लिये लुभाते हैं। इन्हें पढ़तें लगता हैं, हम स्वंय ही यात्रा  कर रहे हैं।
राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी के निदेशक डॉ. आर.डी. सैनी ने कहा कि गतिशलता, संवेदना और कैमरे की तरह एक पल को कैद करने की दृष्टि होना एक अच्छे यात्रा वृतान्त लेखक की पहचान है और यह तीनो ंबातें लेखक डॉ. राजेष कुमार व्यास में उपलब्ध है। उन्होंने नेषनल बुक टस्ट की गतिविधियों की प्रषंसा करते हुए कहा कि टस्ट के कारण ही कष्मीर से कन्याकुमारी जैसी पुस्तक आज हमारे हाथ में है।
वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश उपाध्याय ने कहा कि जो बनावट पर जोर देता है वह खुद के भीतर देखने का खतरा नहीं उठाता है। लेकिन इस पुस्तक के लेखक का स्वयं में भला होना और कवि होना इस पूरी किताब में बार-बार सामने आता है।
यात्रा संस्मरण पुस्तक के लेखक कवि, आलोचक डॉ. राजेष कुमार व्यास ने इस मौके पर पुस्तक के कुछ अंष सुनाये। उन्होंने कहा कि देषभर की यात्राओं से यह तो लगता है कि कष्मीर से कन्याकुमारी तक की सैर सनातन भारत से सैर है। देष को जानना है। यात्रा पर होता हूं तो लिखते नहीं बस अनुभूत कर रहे होते हैं। अनुभवों और भावों की ही यह अभिव्यक्ति है। उन्होंने कुछ रोचक प्रसंग भी सुनाये।
नेशनल बुक ट्रस्ट, इण्डिया के संपादक और वरिष्ठ लेखक पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि घुम्मकड़ प्रवृति के डॉ. राजेश कुमार व्यास के लिखे यात्रा संस्मरण कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले भारत के इतिहास, यहां की संस्कृति और कलाओं के साथ ही जन-जीवन को समेटे हैं। उन्हांेने बताया कि नेषनल बुक नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा अक्टूबर में पुस्तक मेले का आयेाजन भी जयपुर में किया जा रहा है। उन्होंने नेशनल बुक ट्रस्ट की गतिविधियों के बारे में भी बताया। इस अवसर पर पुलिस आयुक्त श्री बी.एल. सोनी, पुलिस उपायुक्त श्री महेन्द्र सिंह चौधरी सहित बड़ी संख्या में विषेषजनों, लेखकांे, साहित्यकारों ने भाग लिया।

Friday, July 6, 2012

कलारूप शिव

राजस्थान पत्रिका समूह के "डेली न्यूज़"" में प्रति शुक्रवार प्रकाशित होता है  यह स्तम्भ "कलातट"". इस बार शिव के कला रूप पर ... आप  भी करें आस्वाद.


Tuesday, June 26, 2012

रेत के अपनापे की कविताएं

राजस्थान पत्रिका (रविवारीय परिशिष्ट) दिनांक 24 जून, 2012 को प्रकाशित पुस्तक समीक्षा

राजस्थान की रेत के कईं रंग हैं। तपते धोरों की रेत, काली-पीली आंधी में उड़ती रेत और बारिश में नहाये धोरों की रेत। रेत के इन भांत भांत के रंगों की मानिंद ही विविधता से भरा है राजस्थान का जीवन और कवि मानिक बच्छावत ने रेत के इन्हीं रंगो को अपने सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह ‘रेत की नदी’ में संजोया है। रेत के बहाने इसमें राजस्थान की धरा ही नहीं ध्वनित हुई है बल्कि मरूस्थली जीवन, प्रकृति भी गहरे से काव्य रूप में उद्घाटित हुई है।
 रेत के धोरों के बीचोबीच बने जैसलमेर के सोनार किले का अनुपम सौन्दर्य इन कविताओं में है तो पीत-पाषाण हवेलियों के शिल्प चितराम भी हैं। लुप्त हो रहे राज्य पक्षी गोडावण की याद यहां है तो जोगियों के डेरे की अनुभूतियां भी है। रेत सबके केन्द्र मंे हैं। ‘रेत नदी’ की पंक्तियां देखें, ‘वर्षों से पड़ी हूं/अछूती/मर्मभरी पीतवर्णी/दर्दीले मरूस्थल की/छाती पर पसरी/स्वर्णझरी/परी-सी लेटी।’ रेत के इन बिम्बों में बच्छावत मरूस्थल की यादों को सहज अपने शब्दों में सिरजते हैं। मसलन सोनार किले पर कविता है तो इसमें दुर्ग की छवि ही आंखों के समक्ष नहीं उभरती बल्कि मरूस्थल का इतिहास, यहां की सभ्यता और संस्कृति भी ध्वनित होती है।
अंर्तवस्तु की गहराई खोजती बच्छावत की इन कविताओं में अनूठी सांगीतिक लय है, ‘काली हिरणी/कुंलाचे भरती/सर् सर् करती/इधर को आती/अर् अर् करती/उधर को जाती।’ ऐसे ही सहज शब्दों में वह रेत की अपनी स्मृतियों को जैसे इनमें पुनर्नवा करते हैं। यहां हवेली, झील में तैरते महलों का अनूठा शब्द कैनवस है तो कैर, सांगरी, बैर के बहाने मरूभूमि से कवि के अपनापे की भी अनुभूति होती है। एक कविता में बच्छावत राजस्थान की मेंहदी के फूलों को याद करते झुरझुरी दिलाती उस मिठी याद को जी रहे हैं जिसमें यौवन की चौखट पर बैठी किसी अल्हड़ युवती की हथेलियां रची जाती है। 
कविताएं और भी हैं जिनमें रेत की आंधी और नमक की झील के साथ वर्षा से भीगे धोरों की सौंधी महक का शब्द सुवास है। कहें मानिक बच्छावत ने ‘रेत की नदी’ में मरूस्थली जीवन के बहाने यहां के अपनापे, परिवेश को गहरे से मुखरित किया है। सुदूर पश्चिम बंगाल में मातृभूमि राजस्थान के बहाने जैसे इन कविताओं में वह अपने होने की तलाश कर रहे हैं। उस होने की जिसमें व्यक्ति अपनी जड़ो को संींचने के लिये उद्यत होता है। इसीलिये शाायद ‘गयी रात रेत पर’ कविता में वह कहते हैं, ‘...और भरता रहा रेत में/मुट्ठियां/गिराता रहा उन्हें/रेत के टीले पर।’

Tuesday, May 1, 2012

कला पर संपादित महती पुस्तक



अभी बहुत समय नहीं हुआ. मित्र पीयूष दैया की हुकू साह की कला पर संपादित  महती पुस्तक आयी थी, "संचियीता हुकू साह". इसकी समीक्षा राजस्थान पत्रिका के लिए की थी. पाठकों की प्रतीक्रियाए उत्साहजनक थी. आपके लिए भी पुस्तक समीक्षा का आस्वाद जरुरी लगा सो यहाँ   -


Saturday, January 14, 2012

रोनू मजुमदार की बांसुरी की तान


रोनू मजुमदार की बांसुरी की तान सुनते उन पर जो लिखा, लखनऊ से प्रकाशित "जन सन्देश टाइम्स" के साप्ताहिक स्तम्भ "संगीत" में छपा है. आस्वाद करें


Wednesday, January 4, 2012

"उम्मीदों का सुनहरा साल"

राजस्थान पत्रिका ने अपने साप्ताहिक परिशिस्ट "हम-तुम" में इस रविवार नए शाल "उम्मीदों का सुनहरा साल" शीर्षक से स्टोरी की...पर्यटन पर मुझसे भी लिखवाया गया...
आप भी करें जो लिखा, उसका आस्वाद...