ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, May 26, 2013

"जनसत्ता"में यात्रा संस्मरण पुस्तक "कश्मीर से कन्याकुमारी" की समीक्षा












"जनसत्ता" के  रविवारीय में यात्रा संस्मरण  पुस्तक "कश्मीर से कन्याकुमारी" की समीक्षा प्रबुद्ध पत्रकार, लेखक श्री ज्ञानेश उपाध्याय ने  भी इससे पहले की थी, उसका भी आस्वाद करें-


http://epaper.jansatta.com/c/1030148

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