ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Monday, August 4, 2014
Saturday, May 10, 2014
सुर जो सजे
"मुम्बई में बांद्रा में बने उनके घर का नाम भी उनकी बेटी 'बोस्की' के नाम पर ही है। इन पंक्तियों का लेखक जब गुलजार के घर 'बोस्कियाना' में प्रवेश करता है तो सबसे पहले ड्राइंग रूम की दीवार पर लगा छोटी सी मासूम बच्ची का पोष्टर स्वागत करते मिलता है। पूछने पर पता चलता है, यह उनकी बेटी 'बोस्की' के बचपन का फोटो है। गुलजार से उनके घर पर बात होती है..."
शीघ्र आ रही पुस्तक 'सुर जो सजे' में गुलजार से संवाद-संस्मरण का अंश।
शीघ्र आ रही पुस्तक 'सुर जो सजे' में गुलजार से संवाद-संस्मरण का अंश।
"अनिल विश्वास ने कहा, 'तुम गाते भी हो?'
जवाब में तलत ने गीत गाकर उन्हें सुनाया। उनकी आवाज का कंपन और मखमली अहसास उन्हें इस कदर भाया कि बाकायदा उनके लिए उन्होंने एक गीत की धुन कंपोज की। तलत महमूद आए तो उन्हें गीत गाने को कहा। तलत संभलकर गीत गाने लगे। अनिल दा ने बीच में ही टोका, 'भाई तु कौन है?'
तलत चौंक कर बोले, 'क्यों दादा गलती हो गई?"
गलती! अरे वह तलत महमूद किधर है जिसे मैंने कल सुना था..."
अनिल विश्वास ने यह वाकया सुनाने के साथ फिल्म संगीत से जुडे ऐसे ही और भी किस्से सुनाए थे। गीत लेखन, गायन, धुन निर्माण आदि के अर्न्तनिहित बहुत सा फिल्म पत्रकारिता के दौरान शायद इसीलिए संजो पाया कि जुनून की हद तक तब फिल्म संगीत से लगाव था। लगाव आज भी है पर अब वह बात कहां हां शीघ्र आ रही 'सुर जो सजे' पुस्तक में ऐसी ही बहुतेरी यादों का वातायन आपके लिए भी खुलेगा ही...
जवाब में तलत ने गीत गाकर उन्हें सुनाया। उनकी आवाज का कंपन और मखमली अहसास उन्हें इस कदर भाया कि बाकायदा उनके लिए उन्होंने एक गीत की धुन कंपोज की। तलत महमूद आए तो उन्हें गीत गाने को कहा। तलत संभलकर गीत गाने लगे। अनिल दा ने बीच में ही टोका, 'भाई तु कौन है?'
तलत चौंक कर बोले, 'क्यों दादा गलती हो गई?"
गलती! अरे वह तलत महमूद किधर है जिसे मैंने कल सुना था..."
अनिल विश्वास ने यह वाकया सुनाने के साथ फिल्म संगीत से जुडे ऐसे ही और भी किस्से सुनाए थे। गीत लेखन, गायन, धुन निर्माण आदि के अर्न्तनिहित बहुत सा फिल्म पत्रकारिता के दौरान शायद इसीलिए संजो पाया कि जुनून की हद तक तब फिल्म संगीत से लगाव था। लगाव आज भी है पर अब वह बात कहां हां शीघ्र आ रही 'सुर जो सजे' पुस्तक में ऐसी ही बहुतेरी यादों का वातायन आपके लिए भी खुलेगा ही...
Friday, May 9, 2014
ओमपुरी से हुआ यह संवाद
कुछ दिन पहले बीकानेर जाना हुआ तो पुराने रिकॉर्ड खंगालते फिल्म पत्रकारिता के दिनों, फिल्मों पर लिखे कुछेक गुम हुए प्रकाशन हाथ लग गए। शीघ्र आपसे साझा करूंगा। हां, राजस्थान पत्रिका में प्रति शनिवार कोई तीन वर्ष तक एक कॉलम लिखा था, 'सरगम'. उसके भी कुछ पुराने प्रकाशित अंक मिल गए। इन सबका इसलिए भी महत्वअधिक लग रहा है कि शीघ्र 'सुर जो सजे' पुस्तक में मेरे फिल्म पत्रकारिता, फिल्मों पर लिखे का निचोड आपको मिलेगा। वह आपके हाथों में हो तब तक कुछ यादें साझा करता रहूंगा.
फिलहाल राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम का अध्यक्ष बनाए जाने के त्वरित बाद ओमपुरी से हुआ यह संवाद ...
Tuesday, April 29, 2014
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