ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Friday, May 9, 2014

ओमपुरी से हुआ यह संवाद


कुछ दिन पहले बीकानेर जाना हुआ तो पुराने रिकॉर्ड खंगालते फिल्म पत्रकारिता के दिनों, फिल्मों पर लिखे कुछेक गुम हुए प्रकाशन हाथ लग गए। शीघ्र आपसे साझा करूंगा। हां, राजस्थान पत्रिका में प्रति शनिवार कोई तीन वर्ष तक एक कॉलम लिखा था, 'सरगम'. उसके भी कुछ पुराने प्रकाशित अंक मिल गए। इन सबका इसलिए भी महत्वअधिक लग रहा है कि शीघ्र 'सुर जो सजे' पुस्तक में मेरे फिल्म पत्रकारिता, फिल्मों पर लिखे का निचोड आपको मिलेगा। वह आपके हाथों में हो तब तक कुछ यादें साझा करता रहूंगा. 

फिलहाल राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम का अध्यक्ष बनाए जाने के त्वरित बाद ओमपुरी से हुआ यह संवाद ...






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