ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, March 22, 2015

‘पुस्तक वार्ता’ में ‘सुर जो सजे’

नेशनल बुक ट्रस्ट , नई दिल्ली की और से प्रकाशित मेरी पुस्तक ‘सुर जो सजे’ की समीक्षा महत्मा गांंधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘पुस्तक वार्ता’में ख्यात आलोचक, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपमजी ने की है। उनका आभार! आप भी करें आस्वाद ...




... ‘सुर जो सजे’ हिन्दी सिनेमा संगीत के इतिहास के संवेदनशील पक्षों को पूरी आत्मीयता से उद्घाटित करती है। कह सकते हैं यह छोटी सी पुस्तक एक झरोखा है जिसके माध्यम से हम सिनेमा संगीत ही नहीं भारत की सांस्कृतिक परम्परा को एक नए नजरिए से देख सकते हैं।...
                                                                                                                          -- विनोद अनुपम 
                                                                                                                            ‘पुस्तक वार्ता’





सुर जो सजे

दैनिक भास्कर समूह की पत्रिका "अहा! जिंदगी" के मार्च अंक में "सुर जो सजे" पर ...