ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Friday, June 10, 2016

कलाएँ अंतरात्मा की रूप विधान की सृष्टि

अयोध्या पहले भी जाना हुआ है, पर  इस बार राष्ट्रीय कला शिविर में बहुत कुछ नए अनुभव जुड़े। देशभर के कलाकारों के साथ बतियाया, मित्र अवधेश मिश्र के संयोजन में शिविर में कलाकृतियों पर वृहद विमर्श भी हुआ. एक रोज़ दैनिक जागरण ने अपने संवाददाता को कलाओं पर संवाद करने के लिए भेजा। सुखद लगा, किसी अखबार को कलाओं पर पाठकों को देने की सूझ है, अन्यथा पत्र-पत्रिकाओं से कला-संस्कृति का स्थान तो  धीरे धीरे लोप हो रहा है... 
जागरण ने  इंटरव्यू किया, और कलाओं की दी मेरी संज्ञा "कलाएँ अंतरात्मा की रूप विधान की सृष्टि" को ही हेडिंग दिया। सुखद लगा. आप भी आस्वाद करें-