Friday, November 15, 2024

'कथूं—अकथ' माने 'कहता हूं, वह जो अनकहा है...

'देव दीपावली' पर 'कथूं—अकथ' माने 'कहता हूं, वह जो अनकहा है'
बचपन से ही डायरी लिखता आ रहा हूं—कभी सहज हिंदी में लिखता हूं तो कभी अनायास अपनी मातृभाषा राजस्थानी में शब्द झरते हैं। 
यह साहित्य और संस्कृति से सरोकारों की मेरी अनुभूतियों का लोक—आलोक है। 
चिंतन—मनन भी इसमें है। 
बहुत सारी बातें—यादें...
"बोधि प्रकाशन" ने इसे प्रकाशित किया है--


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