नाट्यशास्त्र का जितनी बार भी पारायण किया, कलाओं का नया कुछ पाया है। मुझे लगता है, इसके जरिए भारतीय कला की पूरी की पूरी एक शब्दावली तैयार हो सकती है।
अभिनव ने नाट्य को 'सर्वशिल्प प्रवर्तकम्' कहा है। माने इसमें तमाम कलाओं की प्रवर्तन है। पर हर कला दूसरी में घुलकर भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती है।
...भरतमुनि ने नाट्य को लोक का अनुकरण कहा है। नाट्यशास्त्र के अंतिम अध्याय में आता है जो कुछ है, इसमें आ गया है फिर भी कुछ बचता है तो वह लोक से लें। माने शास्त्र का लोक—आलोक कोई है तो वह यह नाट्यशास्त्र है...
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