ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Monday, April 28, 2025

रविवारीय 'अमर उजाला' में...

नाट्यशास्त्र का जितनी बार भी पारायण किया, कलाओं का नया कुछ पाया है। मुझे लगता है, इसके जरिए भारतीय कला की पूरी की पूरी एक शब्दावली तैयार हो सकती है।

अभिनव ने नाट्य को 'सर्वशिल्प प्रवर्तकम्' कहा है। माने इसमें तमाम कलाओं की प्रवर्तन है। पर हर कला दूसरी में घुलकर भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती है।

...भरतमुनि ने नाट्य को लोक का अनुकरण कहा है। नाट्यशास्त्र के अंतिम अध्याय में आता है जो कुछ है, इसमें आ गया है फिर भी कुछ बचता है तो वह लोक से लें। माने शास्त्र का लोक—आलोक कोई है तो वह यह नाट्यशास्त्र है...

रविवारीय 'अमर उजाला' 27 अप्रैल 2025


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