ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Tuesday, June 17, 2025

जीवन योग—संगीत

"...पंडित रविशंकर को सुनते अद्भुत अंतर उजास पाया। तभी सहज प्रश्न उपजा था, 'संगीत में यह अलौकिक प्रभाव आप कैसे लाते हैं?' उनका जवाब था, "संगीत योग साधना है। मैं सितार बजाते खुद समाधिस्थ हो जाता हूं।' ...संगीत जीवन—योग है। जहां गति है, प्रकृति है—वहीं संगीत का योगबोध है। संगीत वाद्य या ध्वनिभर ही तो नहीं है! कल—कल बहती नदी, झर—झर बहते झरने, पक्षियों के कलरव, पत्तों की खड़खड़ाहट में संगीत भरा है। पर इसे सुनने का योग हर किसी के बस का नहीं! अंतर जगेगा तभी मन संगीत की इस योग साधना से जुड़ेगा।...याद है, मीरा के भजन 'जा मत जा रे जोगी' को एक दफा मलिकार्जुन मंसूर के स्वरों में सुना। सुनते लगा, मन अंतर—उजास से नहा उठा है। स्वरों की पुकार, लयबद्ध लघु दोहराव! ऐसे ही कुमार गंधर्व को जब भी कबीर के पद 'उड़ जाएगा हंस अकेला' गाते सुना, मन संसार के असार को हृदय में संजोता समाधिस्थ हुआ है। कुमार गंधर्व ने कबीर के निर्गुण में लोक का उजास घोला है। संगीत में सधे सुर सदा ऐसे ही अंतर्मन संवेदनाओं को जगाते हैं। तो कहें, मन के रीतेपन को भरने का योग है—संगीत!"

 दैनिक जागरण 16 जून 2025


Saturday, June 14, 2025

"राजस्थान इन्टरनेशनल सेंटर" में व्याख्यान...

पंडित विश्वमोहन भट्ट जी के सान्निध्य में सुरेन्द्र पाल जोशी कला स्मृति ट्रस्ट ने स्व. जोशी की स्मृतियां संजोने की महती पहल की।

युवा कला प्रदर्शनी के साथ संगीता जोशी जी की पहल पर इस आयोजन में उन पर विशेष व्याख्यान देने की नूंत थी। इस दौरान उनके सौंपे मनोहारी कला—भव को जिया...कलाओं की विरल, पर विविधता भरी उनकी दृष्टि पर अपनी बात रखते उनकी स्मृतियों से पुनर्नवा हुआ।