Saturday, May 2, 2020

नवनीत, मई 2020 अंक

"...सतीश गुजराल ने चित्रों की अनूठी काव्य भाषा रची। उनके चित्र, मूर्तियों, म्यूरल और इमारतों की सिरजी संरचनाओं में भारतीय कलाओं के सर्वांग को अनुभूत किया जा सकता है।...आकृतिमूलक होते हुए भी सांगीतिक आस्वाद में अर्थ की अनंत संभावनाओं को उनकी कला में तलाशा जा सकता है। एक तरह की किस्सागोई वहां है। उनकी स्वैरकल्पनाएं (फंतासी) भावों का अनूठा ओज लिए सौंदर्यबोध की विरल जीवनदृष्टि है। यह सही है,उनके आरंभिक चित्र गहरा अवसाद लिए विभाजन की त्रासदियों पर आधारित है परन्तु बाद की उनकी कलायात्रा पर जाएंगे तो यह भी पाएंगे आत्मान्वेषण में उन्होंने भारतीय कला दृष्टि को अपने तई चित्र भाषा के नये मुहावरे दिये।..."



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