ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, May 24, 2025

दृश्य की सुगंध घुली कलाकृतियां

पत्रिका, 24 मई 2025

कलाएं दृश्य—श्रव्य का आख्यान है। कितना—कुछ हम देखते—सुनते और पढ़ते हैं! कईं बार मन किसी खास दृश्य या पढ़े में ही अटक जाता है। गुलेरी ने तीन ही कहानियां जीवन में लिखी पर 'उसने कहा था' प्यार की आध्यात्मिक अनुभूति कराती अभी भी मन में बसी है। भीड़ भरे बाजार में लहना सिंह लड़की को तांगे के नीचे आने से बचाता है। वह पूछता है, 'तेरी कुड़माई हो गई?' लड़की 'धत्' कहते भाग जाती है। ऐसा कईं बार होता है। एक दिन लड़की कहती है, 'हां हो गई।', 'कब?', 'कल—देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ शालू!' शब्द—सृजन का यह मार्मिक आख्यान है। साहित्य ही नहीं चित्र संग भी यही है। रंग—रेखाओं में दृश्य, कईं बार इस कदर घुल—मिल जाता है कि वह सदा के लिए हमारी स्मृति का हिस्सा बन जाता है। इधर कलाकार कनु पटेल की कलाकृतियों का घूंट घूंट आस्वाद किया। लगा, वह समय जो बीत गया है, उसका चलायमान सिरजते हैं।  कला में स्मृतियों की सुगंध घोलते हैं। 

उनके चित्रों मे जितना मूर्त है, उतना ही अमूर्त भी है। दृश्य है, पर निहित संवेदनाओं का मधुर गान वहां है। समुद्र, धरती और आकाश को केन्द्र में रखकर उन्होंने रंग—रेखाओं में कहन का माधुर्य रचा है। एक चित्र है, जिसमें बैलगाड़ियां की कतारबद्ध शृंखला में छड़ी ऊपर किए हांकने वाले की मुद्रा और भागतै बैलों की गति का दृश्य है। बैलों की दौड़, उड़ती धूल और सब—कुछ गतिमान! ऐसे ही उनकी भागते ऊँटों, हिनहिनाते अश्व, नृत्य में गतिमान देह की विरल व्यंजना है। और यही क्यों? कभी कनु पटेल ने 'रेन स्केप' शृंखला सिरजी थी। गरजते बादल, चमकती बिजली और सिहरता जीवन! अतिवृष्टि से पीड़ित मानवता के दृश्यों की  करुणा को उन्होंने यहां जिया है। एक कलाकृति में रेत के धोरों पर सो रही स्त्री, नीलापन ओढ़े आकाश या कहें उसकी घनीभूत परछाई और सूर्य किरणों की चमक बिखेरता पेड़ है। वृक्ष, स्त्री और धरित्रि की यह अर्थभरी छटा है। कनु की कलाकृतियों में स्थिरता नहीं है, सब कुछ चलायमान है। रंग—रेखाओं में भारतीय दर्शन, चिंतन की भी अनुगूंज है। उनके सिरजे बुद्ध, गांधी, प्राचीन भारतीय शिल्प और पुराने पन्नों के रूपाकार गुजरे समय और उसमें निहित संवेदनाओं का मनोहरी रूपांकन है। मुझे लगता है,दृश्य में निहित गति में वह अपने होने को विसर्जित कर देते हैं। इसी से उनकी सिरजी कलाकृतियां अतीत नहीं बनती, रंग—रेखाओं में गूंथी वह धुन बन जाती है जिसे हर कोई देखते हुए सुनना चाहता है।  

बड़े गुलाम अली खां के बारे में किस्सा मशहूर है। एक दफा वह गांव गए। देखा एक सुंदर लड़की पनघट से पानी भर नाज से उनके आगे से निकल गई। उस्ताद जी मुग्ध उसे देखते रह गए। शिष्य हैरान। उस्तादजी को इस उम्र में यह क्या हुआ? औचक उस्ताद जी के मुंह से निकला, अहा!  क्या नजाकत, चाल और पतली कमर है। काश! गान में यह आ जाए। कनु पटेल ने यही किया है। जो देखा, उसे रंग—रेखाओं में जीवंत किया है।

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