ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, January 14, 2012

रोनू मजुमदार की बांसुरी की तान


रोनू मजुमदार की बांसुरी की तान सुनते उन पर जो लिखा, लखनऊ से प्रकाशित "जन सन्देश टाइम्स" के साप्ताहिक स्तम्भ "संगीत" में छपा है. आस्वाद करें


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