ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Thursday, November 29, 2018

दिनेश ठाकुर- आजकल, सितंबर 2009

दिनेश ठाकुर ने रंगकर्म को सदा ही गहरे से जिया। उनसे कभी लंबा संवाद हुआ था. यह प्रकाशन विभाग की पत्रिका आजकल के सितंबर 2009 अंक में छपा-




दुष्यंत-"आजकल", जुलाई 2001

हिंदी गजल के इतिहास पुरुष दुष्यंत पर यह आलेख 
"आजकल", जुलाई 2001 अंक 



यादवेंद्र शर्मा "चंद्र" - आजकल-नवम्बर 1993

प्रकाशन विभाग की मासिक पत्रिका "आजकल"  के नवम्बर 1993 अंक में प्रख्यात कथाकार यादवेंद्र शर्मा "चंद्र" का यह साक्ष्यात्कार प्रकाशित  हुआ था. पुराने पन्नों में आज मिल गया.



दीठ रै पार

बोधि प्रकाशन से प्रकाशित राजस्थानी भाषा के तीसरे काव्य संग्रह 'दीठ रै पार' पर कवि, आलोचक डॉ. मदनगोपाल लढ्ढा की यह दीठ—राजस्थान पत्रिका में ...10 दिसंबर 2017 


Sunday, November 25, 2018

नर्मदे हर - अमृत लाल वेगड़ जी की प्रतिक्रिया


एन बी टी से प्रकाशित यात्रा संस्मरण की पुस्तक "नर्मदे हर" पर नर्मदा के अनथक पदयात्री स्व. अमृत लाल वेगड़ जी ने अपनी प्रतिक्रिया  दी थी ... 


कश्मीर से कन्याकुमारी-अमृत लाल वेगड़ जी का पत्र

 यात्रा संस्मरण की पुस्तक "कश्मीर से कन्याकुमारी" पर नर्मदा के अनथक पदयात्री स्व. अमृत लाल वेगड़ जी ने हस्तलिखित पत्र भेजा था, आपकी नज़र -