ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
अभी बहुत समय नहीं हुआ. मित्र पीयूष दैया की हुकू साह की कला पर संपादित महती पुस्तक आयी थी, "संचियीता हुकू साह". इसकी समीक्षा राजस्थान पत्रिका के लिए की थी. पाठकों की प्रतीक्रियाए उत्साहजनक थी. आपके लिए भी पुस्तक समीक्षा का आस्वाद जरुरी लगा सो यहाँ -