भारत की खोज करते-करते कोलम्बस भारत तो नहीं पहुंच पाया परन्तु उसने नई दुनिया की जरूर खोज कर दी। इसके बाद पूर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा ने भारत खोज का लक्ष्य करते जब अपनी यात्रा प्रारंभ की तो उसे बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा परन्तु अंततः उसने भारत को ढूंढ ही निकाला। कहा यह भी जाता है कि केरल के गर्म मसालों की खूशबू ने ही वास्का-डी गामा से भारत की खोज करवाई। जो, हो इस बात से तो इन्कार किया ही नहीं जा सकता कि वास्कोडिगामा के जरिए ही पहले पहल केरल के गर्म मसालों का स्वाद सुदूर देशों तक पहंुचा। काली मीर्च, लौंग, इलायची, जायफल, दालचीनी, जावित्रि, तेजपत्ता आदि मसालों की यह प्रदेश खान है।....यहां चाय बागानों की भी भरमार है। मीलों तक फैले चाय बागान ऐसे लगते हैं जैसे हरी-भरी मखमली कालीन धरती पर बिछायी हुई हो।
....केरल के इदुक्की जिले के प्रसिद्ध पर्वतीय स्थल मुन्नार की ओर हमारी गाड़ी आगे बढ़ रही है। गर्म मसालों की सर्वाधिक खेती यहीं होती है। यह पूरा इलाका पहाड़ी है।....ड्राइवर बेहद सावधानी से गाड़ी पहाड़ों पर चढ़ा रहा है। गाड़ी से बाहर मीलों तक फैले चाय उद्यानों का मनभावन दृश्य देखते और इलायची की खूशबू को महसूस करते हम दक्षिण भारत के पहाड़ों पर सैर की अनुभूति से ही रोमांचित है। यहां सड़क के किनारे मसालों की दुकाने भी थोड़े-थोड़े अन्तराल पर दिखायी देती है, पर्यटक इन्हीं से गर्म मसालों की खरीद कर रहे हैं।
...लो पहुंच गए मुन्नार। पहाड़ों की ठंडक का अपना मजा है। घुमते-फिरते इस ठंडक को अनेक बार महसूस करता रहा हूं परन्तु यहां कुछ अलग बात है। हवा के झोंकों के साथ इलायची की खूषबू फिजाओं में जो है। ....ड्राइवर होटल में गाड़ी पार्क करता है। हम होटल मैनेजर से ही आस-पास के स्थानों के बारे में जानकारी लेते हैं। मुन्नार मुद्रापुझा, नलथन्नी और कुंडला नाम की तीन पहाड़ियों पर बसा है। पहाड़ों पर कभी ट्रेकिंग करते तो कभी गाड़ी के जरिए इधर-उधर घुमते ही चाय बागानों की सैर हो जाती है। यहां आस-पास के स्थानों पर खूबसूरत झीलें, जल प्रपात और चाय बागानों का सौन्दर्य चप्पे-चप्पे पर बिखरा पड़ा है। यहीं दक्षिण भारत की सबसे ऊंची अनामुड़ी चोटी भी है।
मित्र सुनील यहां के वन्य जीव अभ्यारण्य की सैर के लिए राय देते हैं। हम सभी उनकी इस बात से सहमत हैं। दक्षिण भारत के हराविकुलम-राजमाला क्षेत्र का राष्ट्रीय वन्य प्राणी अभ्यारण्य और चिन्नूर वन्यप्राणी अभ्यारण्य में वनों का घनापन इतना है कि इसे देखकर अनजाना सा एक भय भी मन में प्रवेष करता है।...हम अभ्यारण्य में दूर तक निकल आए हैं। जीव जंतुओं और वनस्पतियां के बीच यूं घुमना भला-भला सा लग रहा है। लगता है भागमभाग को छोड़ते ऐसे पल ही जिंदगी में आ जाएं तो कितना अच्छा हो परन्तु यह कोरी कल्पना है। जिस कंक्रिट के जंगल में हम रहते हैं, वहां पलभर को किसी बात की सोचने की ही फूर्सत नहीं है... फिर भी जंगलों में यूं बेपरवाह घुमते लगता है बचपन के दिन लौट आए हैं। तब कहां किसी बात की चिन्ता होती थी, जो अच्छा लगता वही करते थे। अब हर पल, हरक्षण जैसे हमें जिन्दगी की रेस बहुत कुछ करने से रोक देती है।...कहीं हमसे कुछ ऐसा नहीं हो जाए, कुछ वैसा नहीं हो जाए। दूसरे से पिछड़ नहीं जाए। नौकरी में ट्रेक से भटक नहीं जाए....इतनी चिन्ताएं कि हर पल सजग रहता है मन।...अरे! भाग रहा है हिरनी का बच्चा। शायद हमें देखकर भागा है।...चौकन्नापन इतना कि हल्की सी आहट ही उसे हमसे बगैर किसी खतरे के दूर, बहुत दूर कर देती है।... हमारे साथ भी क्या यही नहीं हो रहा! भीड़ के जंगल में हर आहट से चौकन्ने जैसे अपने आप से ही हम हर पल, हर क्षण दूर हुए जाते हैं।
‘क्या सोचने लगे? प्रकृति को देखो। प्रकृति के नजारों को देखो। देखो, इन जंगल के जीव जंतुओ को।’ मुझे बहुत देर से चुप विचारों में खोए देखते जी.पी.शुक्लाजी ने कहा तो मैं विचारों के घने जंगल से फिर से मुन्नार अभ्यारण्य में लौट आया। जंगल के नीरव वातावरण में पक्षियों की चहचहाट और झाड़ियों में सरसराते पशुओं की आहट को हम साफ सुन रहे थे कि कोई जंगली जानवर तेजी से झाड़ियों में लुप्त होता चला गया। ...यहां इस अभ्यारण्य में विषाल वृक्ष हैं। ऐसे पक्षी भी बहुतायत से दिखायी दे रहे हैं, जिन्हें पहले कभी देखा नहीं। पक्षी विज्ञान के बारे में ज्यादा जानकारी भी तो नहीं है, इसलिए उनकी प्रजातियों की पहचान भला हमें कैसे हो।...मनोरम जंगल!....कहीं, कहीं घास उबड़ खाबड़ मैदान! बहुत देर तक अभ्यारण्य में यूं ही घुमते रहे हैं।
मुन्नार के आस-पास पहाड़ ही पहाड़ हैं। अभ्यारण्य तो खैर घोषित उद्यान है परन्तु यूं भी यहां इधर-उधर भ्रमण के दौरान जंगल की सैर लुभाती है।...जल प्रपात, नदियां और पहाड़ के नीचे कुछ स्थानों पर ठहरा पानी तालाब की मानिंद।...दूर तक नजर जाए तो चाय के बागान सुनियोजित हरियाली फैलाए। लगता है, प्रकृति यहां पर पूरी तरह से मेहरबान है। प्रकृति का सौन्दर्य यहां तरतीब से बिखरा पड़ा है।

"डेली न्यूज़" के रविवारीय परिशिस्ट "हम लोग" में 18 जुलाई 2010 को प्रकाशित डॉ.राजेश कुमार व्यास का यात्रा संस्मरण
आप जैसे बुद्धिजीवी का ब्लाग जगत मे स्वागत
ReplyDeleteअर्रे गज़ब की फोटो है और पहाड़ों का पूरा मज़ा ही आपने करा दिया.
ReplyDeleteभाई आनंद आ गया.
आपका स्वागत है. मूनार के बारे में अच्छी जानकारी वह भी सुन्दर चित्रों के साथ. एक बात अवश्य कहना चाहूँगा की वास्को डा गामा ने न ही भारत की या फिर केरल के मसालों की खोज की थी. सुदूर पूर्व रोम से ईसापूर्व से ही व्यावसायिक सम्बन्ध रहे हैं. तबसे ही मसालों का निर्यात होता रहा है.
ReplyDeleteयह वर्ड verification हटा लें.
aapke yahaan aaker bahut si jankari milee.
ReplyDeleteराजेश जी
ReplyDeleteनमस्कार !
मुन्नार के जंगलों की सचित्र सैर कराने के लिए आभार !
बहुत अच्छा ब्लॉग है आपका । मैं यहां आज तो चिट्ठाजगत की मेहरबानी से पहली बार पहुंचा हूं , आगे से स्वतः भी आता रहूंगा ।
बहुत बहुत शुभकामनाएं , और स्वागत !
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा , आपकी प्रतीक्षा रहेगी …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बहुत खूब ..पड़ कर दिल प्रसन्न हुआ ..,
ReplyDeleteख़ूबसूरत ब्लॉग के लिए सुभकामनाएँ .. मक्
http://www.youtube.com/mastkalandr
http://www.youtube.com/9431885
Aapne mera likha padha aur apna beskimti samy is nachij ko diya.
ReplyDeletesukriya!
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट-ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट ब्लाग4वार्ता पर,यहां क्लिक करे।