ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Friday, October 2, 2020

'पुस्तक संस्कृति' मे 'नर्मदे हर'

नेशनल बुक ट्रस्ट ​इण्डिया की लोकप्रिय पत्रिका 'पुस्तक संस्कृति' के सितम्बर—अक्टूबर 2020 अंक मे 'नर्मदे हर' पर केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष, प्रेमचंद के लेखन के मर्मज्ञ विद्ववान डॉ. कमल किशोर गोयनका की यह दीठ और नर्मदा के अनथक पदयात्री अमृतलाल वेगड़ जी का पत्र... (पुस्तक की पाण्डुलिपि उन्होंने बांची थी और और तभी उन्हें यह इतनी दाय आयी कि इस पर अपनी सुंदर हस्तलिपि में अपने को व्यक्त किया था)