ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, February 25, 2023

फागुण सुहाणो, सैर बीकाणो

     

राजस्थान पत्रिका, 25 फरवरी 2023

यह लिख रहा हूं और रंगों के त्योंहार होली की परंपरा के आलोक में एक मित्र द्वारा भेजे गये वीडियो का भी आस्वाद कर रहा हूं। अनुभूत हो रहा है, कस्बाई संस्कृति में रचे—बसे अपने शहर बीकानेर का अपनापा और बरसों पुरानी होली की सभी परंपराएं जैसे इसमें श्रव्य—दृश्य आधुनिकी में जीवंत हो उठी है। असल में शिवदत्त ओझा द्वारा लिखा यह 'फागुण सुहाणो, सैर बीकाणो' राजस्थानी गीत है जिसे अशोक बोहरा ने अपने स्वरों में पिरोया है। सांगीतिक दीठ से इसमें कोई खास लय, ताल नहीं है एक बंधी हुई टेर और आधुनिक डीजे की एकरसता के ढम—ढम में पूरा गीत है। पर लोक की लूंठी मिठास और आंचलिक शब्दों की विरल सौरम इसमें है। और इससे भी बड़ी बात यह है कि एक ऐतिहासिक शहर की बरसों पुरानी लोकनाट्य परम्पराओं, होली से जुड़ी उत्सवधर्मिता और जीवन को इसमें जैसे बहुत खूबसूरती से गूंथ दिया गया है। क्या ही अच्छा होऐसे ही हमारी युवा पीढ़ी लोक से जुड़ी हमारी परम्पराओं की आधुनिकी की संवाहक बनती रहे। इसी से बहुत कुछ हमारा जो लोप हो रहा है, वह बचा रहेगा।

कलाओं में परम्पराओं की बढ़त जरूरी है। जब तक नई पीढ़ी को उसकी रूचि, परिवेश में परम्परा के बीज नहीं मिलेंगे, वह उससे आखिर क्योंकर जुड़ेगी! मुझे लगता है, परम्परा संस्कृति से जुड़ी वह अनिवार्य दृष्टि है जिसमें चले आ रहे मूल्यों को स्वीकार करते हम आगे बढ़ते हैं। यह जो आगे बढ़ने की प्रक्रिया है,  वही प्रयोग और नवाचारों के रूप में मनुष्य का एक तरह से कला—अन्वेषण है। मूल बात है, परम्परा के रूप में जो कुछ विरासत का हमारे पास है उसकी गहरे से पहचान और फिर स्वीकार।

शास्त्रीय संगीत में पहले से चली आ रही रागों का संसार ही सब-कुछ है। राग वही हैं जो पहले से चले आ रहे हैं पर कलाकार उन रागों में सदा अपने आपको पुनर्नवा करते हैं। राग शास्वत हैं, उनके अपने अनुशासन हैं उसमें किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं करते हुए भी जो कलाकार समय के प्रवाह संग चलते पहले से बने राग में नवीनता का उत्स करता है, प्रयोगों से बढ़त करता है वही अपनी पृथक पहचान बना पाता है। इसी तरह लोक से जुड़ी बहुत सी परम्पराएं भले ही व्यक्त है, पर उसमें बहुत सारा अव्यक्त भी समाया होता है। जो कुछ किया गया है, उसमें बहुत सारा और करने की भी गुंजाईश बची होती है।

यह महज संयोग नहीं है कि जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में इन दिनों लगी 'सेवन सिस्टर्स' कला प्रदर्शनी भी मुझे परम्परा का पुनराविष्कार अनुभूत हुई । कोरोना में जीवन पर आए संकट, अनुभूतियों में पंख लगा उड़ता स्त्री—मन, तंत्र—मंत्र से जुड़ी हमारी विरासत की ध्यान परम्परा और सहज बतियाती मजदूर महिलाओं की बहुतेरी भाव—भंगिमाओं में जितना इस कला प्रदर्शनी में दृश्य संसार है, उतना ही रंग—रेखाओं, टैक्सचर में निहित और रेखाओं में रचा—बसा स्व—प्रतिष्ठ या कहूं अमूर्त आशय भी यहां समझ आ रहा था। मुझे लगा, कलाकार अर्पणा अनील, मीना बया, चेतना सुदामे, कृष्णा महावर, विपता कपाड़िया, कृति सक्सेना और सुप्रिया अम्बर ने परम्परा में मिले बीजों का कैनवस पर अपने—अपने ढंग से सर्वथा मौलिक दीठ से अंकुरण किया है। इन कलाकृतियों को देखते औचक गायतोण्डे, अमृता शेरगिल, ए.रामचन्द्रन, परमजीत सिंह, रजा आदि कलाकारों की भी याद आती रही। यही होता है। हर कलाकार अपने सिरजे में स्मृतियों के संसार और अनुभव की आंच से ही सदा नवीन होता है। मूल बात है, हम कहीं ठहरें नहीं। परम्परा की उर्वरता अनुभूत करते प्रयोग और नवाचारों से आगे बढ़ें।

Tuesday, February 21, 2023

सरोकार की रेखाएं

हिन्दी अकादमी, दिल्ली की मासिक पत्रिका 'इन्द्रप्रस्थ भारती' के नवीन अंक में...

व्यंग्य चित्रों के आलोक में आर.के.लक्ष्मण का यह संस्मरण—संवाद। नहीं लिखा जाता यह, गर आग्रह कर पत्रिका संपादक नीशा नीशांत जी लिखवा नहीं लेती। आभार!








अंतर्मन आलोक से जुड़ी कलाकृतियां


चित्र और मूर्तिकला मौन की भाषा है।

राजस्थान पत्रिका, 11 फरवरी, 2023

संवेदनाओं से रचा आकाश! अनुभूतियों के गान में वहां स्मृतियां झिलमिलाती है।

देशभर की कलादीर्घाओं में जाना होता है और कईं बार किसी एक कलाकृति को देखते घंटो बीत जाते हैं, फिर भी देखने से मन नहीं भरता।

पर इधर यह भी पाया है, मूर्त-अर्मूत में रंग-रेखाओं और रूपाकारों की हर ओर एकरसता है।

नये के नाम पर कुछ भी बनाने की होड़ भी इस कदर मच रही है कि विषय-वस्तु गौण हो रहे हैं।

इस दृष्टि से कुछ दिन पहले जयपुर स्थित आइसीए कलादीर्घा में राजस्थान के चौदह कलाकारों की कला प्रदर्शनी ’अनहद’ में मन जैसे मथा।...