ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Tuesday, February 21, 2023

सरोकार की रेखाएं

हिन्दी अकादमी, दिल्ली की मासिक पत्रिका 'इन्द्रप्रस्थ भारती' के नवीन अंक में...

व्यंग्य चित्रों के आलोक में आर.के.लक्ष्मण का यह संस्मरण—संवाद। नहीं लिखा जाता यह, गर आग्रह कर पत्रिका संपादक नीशा नीशांत जी लिखवा नहीं लेती। आभार!








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