ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Tuesday, February 21, 2023

अंतर्मन आलोक से जुड़ी कलाकृतियां


चित्र और मूर्तिकला मौन की भाषा है।

राजस्थान पत्रिका, 11 फरवरी, 2023

संवेदनाओं से रचा आकाश! अनुभूतियों के गान में वहां स्मृतियां झिलमिलाती है।

देशभर की कलादीर्घाओं में जाना होता है और कईं बार किसी एक कलाकृति को देखते घंटो बीत जाते हैं, फिर भी देखने से मन नहीं भरता।

पर इधर यह भी पाया है, मूर्त-अर्मूत में रंग-रेखाओं और रूपाकारों की हर ओर एकरसता है।

नये के नाम पर कुछ भी बनाने की होड़ भी इस कदर मच रही है कि विषय-वस्तु गौण हो रहे हैं।

इस दृष्टि से कुछ दिन पहले जयपुर स्थित आइसीए कलादीर्घा में राजस्थान के चौदह कलाकारों की कला प्रदर्शनी ’अनहद’ में मन जैसे मथा।...

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