ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Sunday, July 12, 2020
कहन—सुनन
'कहन—सुनन' में
'कहन—सुनन' कार्यक्रम में कुछ समय पहले बोधि प्रकाशन के प्रकाशक, कवि श्री मायामृग ने यात्रा वृतान्त साहित्य पर लम्बा संवाद किया।इस संवाद में घुमक्कड़ी के अपने अनुभवों के साथ ही यात्रा साहित्य की परम्परा पर भी बोलना हुआ।
चाहें तो इस साक्षात्कार सेआप भी इस लिंक के जरिए साझा हो सकते हैं—
https://www.youtube.com/watch?v=YuOLHquECtU&feature=youtu.be&fbclid=IwAR3Vse1nnR-T-xVnuHkWFKJ2mmP-6x_DUDRPoGVpNpPu1nG-el6uyd16xhs
बातों बातों में ...
बातों बातों में
समालोचक श्री सुनील मिश्र ने लोकप्रिय कार्यक्रम 'बातों बातों में' के लिए एक साक्षात्कार किया। यूट्यूब पर यह उपलब्ध है,चाहें तो मित्र देख सकते हैं।
लिंक यह है —
https://www.youtube.com/watch?v=cVODlucCkp8&feature=share&fbclid=IwAR0w_kUQQz4yLG8rz3h27HsIHdXLEEiU7Cu_yrtu6ttsW4kJcjKMzPySHOg
"बातों बातों में" के 78वें भाग में 9 जुलाई को शाम 7 बजे हमारी भेंट प्रतिष्ठित कला आलोचक एवं संस्कृतिकर्मी डॉ. राजेश कुमार व्यास से होगी। वे जयपुर में रहते हैं।
डॉ राजेश कुमार व्यास बहुआयामी प्रतिभा के लेखक, आलोचक, संपादक एवं संस्कृतिकर्मी हैं। उन्होंने राजस्थान की संस्कृति के सार्थक विस्तार के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया है। उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। लगभग 21 पुस्तकों में राजस्थानी कविता संग्रह, राजस्थान की डायरी, यात्रा वृत्तांत, संस्मरण आदि शामिल हैं।
नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया से प्रकाशित उनके दो यात्रा वृतांत कश्मीर से कन्याकुमारी और नर्मदे हर, इसके अलावा संगीत सर्जना की सुर जो सजे तथा नृत्य आदि कलाओं पर रंगनाद, भारतीय कला, सांस्कृतिक राजस्थान आदि का प्रकाशन पाठकों और कला प्रेमियों में बहुत प्रशंसनीय रहा हैl डॉ. राजेश कुमार व्यास को अब तक अनेक सम्मान मिले हैंl उन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा उनकी काव्य कृति कविता देवै दीठ के लिए पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है l सृजन के अनेकानेक आयामों में वे विनम्र साधक की तरह काम करते हैंl उनसे बातचीत उनके बहुत सारे अनुभव का जीवंत और अनुभूतिपरक साक्ष्य होगी, यह हमारा विश्वास हैl
9 जुलाई को 7 बजे शाम यदि आप व्यस्त न हों तो एक घंटे हमारे साथ अवश्य रहिए। हमें अच्छा लगेगा।
--सुनील मिश्र
Saturday, July 11, 2020
Friday, July 10, 2020
कैमरे की आंख से सिनेमा सृजन का इतिहास
'आजकल' जुलाई अंक में ....
निमाई घोष ने कैमरे की आंख से सिनेमा सृजन का एक तरह से इतिहास लिखा। सत्यजीत राय की छाया-छवियों के बहाने चलचित्र सृजन की प्रक्रिया और उसके इतिहास की सूक्ष्म सूक्ष को अपनी कला में गहरे से अंवेरा। कहूं, सत्यजीत राय के सिनेमा निर्माण से जुड़ी साधना का दृष्य कहन है निमाई घोष की छायांकन कला। उनकी छायांकन कला हमें उस काल बोध से भी जोड़ती हैं जिसमें बजरिए श्वेत-श्याम से लेकर रंगीन छायाचित्रों के सफर में सिने सृजन का पूरा एक युग हमारे समक्ष उद्घाटित होता है।
निमाई घोष ने कैमरे की आंख से सिनेमा सृजन का एक तरह से इतिहास लिखा। सत्यजीत राय की छाया-छवियों के बहाने चलचित्र सृजन की प्रक्रिया और उसके इतिहास की सूक्ष्म सूक्ष को अपनी कला में गहरे से अंवेरा। कहूं, सत्यजीत राय के सिनेमा निर्माण से जुड़ी साधना का दृष्य कहन है निमाई घोष की छायांकन कला। उनकी छायांकन कला हमें उस काल बोध से भी जोड़ती हैं जिसमें बजरिए श्वेत-श्याम से लेकर रंगीन छायाचित्रों के सफर में सिने सृजन का पूरा एक युग हमारे समक्ष उद्घाटित होता है।
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