ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, July 12, 2020

कहन—सुनन



'कहन—सुनन' में

'कहन—सुनन' कार्यक्रम में कुछ समय पहले बोधि प्रकाशन के प्रकाशक, कवि  श्री मायामृग ने यात्रा वृतान्त साहित्य पर लम्बा संवाद किया।

इस संवाद में घुमक्कड़ी के अपने अनुभवों के साथ ही यात्रा साहित्य की परम्परा पर भी बोलना हुआ।

चाहें तो इस साक्षात्कार सेआप भी इस लिंक के जरिए साझा हो सकते हैं—

https://www.youtube.com/watch?v=YuOLHquECtU&feature=youtu.be&fbclid=IwAR3Vse1nnR-T-xVnuHkWFKJ2mmP-6x_DUDRPoGVpNpPu1nG-el6uyd16xhs

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