ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, July 12, 2020

यात्रा वृतान्त 'नर्मदे हर' -डा. कमल किशोर गोयनका


केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष, उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द साहित्य के मर्मज्ञ, विद्वान डा. कमल किशोर गोयनका ने यात्रा वृतान्त 'नर्मदे हर' के प्रकाशन के त्वरित बाद पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया मेल से भिजवाई थी। उनकी यह दीठ ..




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