ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, July 11, 2020

संस्कृति, भूगोल, इतिहास और प्रकृति-प्रेम की रोचक गाथाएं सुनाती यात्राएं

मित्र ज्ञानेश उपाध्याय इस दौर के विरल संपादक, लेखक हैं। 'नर्मदे हर' पर उन्होंने विस्तार से लिखा है। शिक्षा विभाग की लोकप्रिय पत्रिका  'शिविरा' के जुलाई 2020 अंक  में प्रकाशित उनकी यह दीठ आप मित्रों के लिए भी...


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