ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, October 22, 2022

अवनीन्द्रनाथ की कलाकृति 'तिष्यरक्षिता'

 "...संवेदना की आंख में कला प्रायः इतिहास-संदर्भ मुक्त होती है। इतिहास असल में तथ्यों पर निर्भर भौतिकवादी विचार है जबकि कलाएं अंतर्मन का विचार-उजास है।...अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की कलाकृति 'तिष्यरक्षिता' एक दृष्टि में कामुक चरित्र को दर्शाती है पर चित्र का सच यही नहीं है।... कलाकृतियों को बनी-बनाई धारणाओं को उनसे जुड़े प्रचलित संदर्भों से मुक्त देखेंगे तो भारतीय कला का और भी बहुत कुछ महत्वपूर्ण हम पा सकेंगें। .."

राजस्थान पत्रिका, 22 अक्टूबर 2022


Monday, October 17, 2022

'संवाद' में इस बार सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता, निर्देशक के.सी. बोकाड़ियाजी

दूरदर्शन के लोकप्रिय कार्यक्रम 'संवाद' में इस बार आप देखिए—सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता, निर्देशक के.सी. बोकाड़ियाजी से आपके इस मित्र की हुई यह अंतरंग मुलाकात। सिने जगत में उनका 50 साल का सफल पूरा हो गया है। वर्ष 1972 में निर्मित संजीव कुमार, माला सिन्हा की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'रिवाज' उनकी पहली फिल्म थी। इसके बाद फिरोज खान के साथ 'चुनौती' बनाई। 'आज का अर्जुन', 'फूल बने अंगारे', 'नसीब अपना-अपना', 'प्यार झुकता नहीं' और 'तेरी मेहरबानियां' जैसी हिट फिल्मों का निर्माण उन्होंने किया है और अभी भी वह फिल्म जगत में निरंतर सक्रिय हैं। उनके 50 साला सफर पर डीडी राजस्थान पर यह खास 'संवाद' 21 अक्टूबर 2022 को रात्रि 9 बजे।



Sunday, October 16, 2022

राजस्थान पत्रिका में 'कला—मन' की समीक्षा

 राजस्थान पत्रिका में आज 'कला—मन' की समीक्षा...

"...लेखक एक ऐसा आकाश दिखाते हैं जिसमें तमाम कलाएं समाए हुई है। इसमें सारी कलाओं का गान है, तथ्य और मर्म के बाद। इनको पढ़ने के बाद पाठक वह नहीं रहता जो इस किताब को पढ़ने से पहले तक था। इसके बाद उसका मन भी लेखक का सा मन हो जाता है, कला—मन।"

—डॉ. सत्यनारायण

राजस्थान पत्रिका, 16 अक्टूबर 2022


Saturday, October 15, 2022

दीप जलाएं जतन से...

 'नवनीत' के अक्टूबर 2022 अंक में...

"... चन्द्रमा की सोलह कलाएं होती है। सोलहवीं कला अमावस्या की अदृश्य कला है। यही अमृता है। अमृता का अर्थ है—समाप्त न होना। दीपावली के जगमगाते दीयों का आलोक हरेक मन को भाता है। सौंदर्य की अद्भुत सृष्टि वहां है। नेत्रों को तृप्ति प्रदान करती हुई। ...दीप पर्व में जीवन को आलोकित करने का मंतव्य गहरे से निहित है। आज से नहीं, युग—युगों से।..."







Saturday, October 8, 2022

लोक स्वरों में माधुर्य का अनुष्ठान

 लोक का वैदिक अर्थ है, उजास। संपूर्ण यह संसार जो दृश्यमान है। लोक शाश्वत है, इसलिए कि वहां जीवन का नाद है। लोक संगीत का जग भी तो अनूठा है! भोर का उजासतपते तावड़े (धूप) में छांव की आस, सांझ की ललाई और तारों छाई रात में छिटकती चांदनी की विरल व्यंजना लोक संगीत में गूंथी मिलेगी। राजस्थान की तो बड़ी पहचान ही इस रूप में है कि यहां शास्त्रीय की ही तरह लोक कलाओं के भी घराने हैं। सुनने में अचरज लगे, पर यह सच है।  मांगणियार, लंगा, मीरासी, ढोली, दमामी आदि जातियां लोक संगीत के घराने ही तो हैं! 

पीढ़ी दर पीढ़ी इन घरानों ने न केवल लोक संगीत की परम्परा को सहेजा है बल्कि समयसंगत करते उसमें निंरतर बढ़त भी की है। दूरदर्शन, जयपुर ने हाल ही कलाओं से जुड़ा महती कार्यक्रम 'संवाद' आरम्भ किया है। इसकी शुरूआत ही सुप्रसिद्ध लोकगायक पद्मश्री अनवर खान से हुई है। उनसे कार्यक्रम में जब बातचीत हुई, उनके गान से साक्षात् हुआ तो लगा, राजस्थान का लोकसंगीत शास्त्रीय आलाप, लयकारी की ​मानिंद माधुर्य का अनुष्ठान है। 


अनवर खान मूलत: मांगणियार है परन्तु सुनेंगे तो लगेगा लोक के आलोक में उनके स्वरो में शास्त्रीयता का भी उजास है। स्वरों की गहराई, लयकारी, आलाप और परम्परा से मिले संस्कारों को उन्होंने अपने गान में सदा ही पुनर्नवा किया है। 

लोक से जुड़ी गणेश वंदना और मांड राग में गूंथे 'पधारो म्हारे देश' को उन्होंने अलहदा अंदाज में जैसे स्वरों से श्रृंगारित किया है।  'झिरमिर बरसै मेह' 'हिचकी', 'हेलो म्हारो सुणो रामसा पीर' और 'दमादम मस्त कलंदर' जैसे जगचावै गीत, भजन, हरजसपर लग रहा था जैसे  लूंठी लयकारी में कोई शास्त्रीय गायक स्वरों को साध रहा है।  यह महज संयोग नहीं है कि सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायकों  पं. रविशंकर, पं. भीमसेन जोशी, पं. जसराज आदि के समानान्तर उनके भी लोक गायन के कार्यक्र्म निरंतर विदेशों में हुए हैं। 

पं. विश्वमोहन भट्ट के साथ कभी उन्होंने 'डेजर्ट स्लाइड' शृंखला के तहत फ्रांस, बेल्जियम, हॉलैण्ड, अमेरिका, अ​फ्रिका आदि देशों में मोहनवीणा, कमायचे, खड़ताल संग धोरों का जैसे हेत जगाया। वह गाते हैं, 'पियाजी म्हारा, बालम जी म्हारा...झिरमिर बरसै मेह...' और लगता है बालू रेत बरसती बरखा की बूंदो संग तन और मन दोनों ही भीगभीग रहे हैं। स्वरों का अनूठा लालित्य! राजस्थानी मांड के दुहों को आलाप में जैसे वह अलंकृत करते हैं।  जीवन से जुड़े अनुभवों, प्रकृति की छटाओं और राजस्थानी रीतिरिवाजों को उनका गान जैसे दृश्य रूप देता है।अनवर खान का गान कुछकुछ सूफी अंदाज लिए है। एक विरल फक्क्ड़पन उनके स्वरों में है। स्वरों का खुलापन! श्वांस पर अद्भुत नियंत्रण। लोक में बसी शास्त्रीयता। सूफी गान की परम्परा का जैसे वह लोकसंगीत में रूपान्तरण करते हैं। कबीर, सुरदास, मीरा, रैदास के लिखे को वह गाते हैं पर सुनते यह भी लगता है कि लोक ने अपने ढंग से बहुत कुछ और भी उनकी रचनाओं में अपना जोड़ा है।

अनवर खान ने देश के ख्यातविख्यात शास्त्रीय गायकसंगीतकारों के साथ जुगलबंदियां की हैं। कभी जगजीत सिंह के एलबम 'पधारो म्हारे देश' के मुख्य गीत का मुखड़ा उन्होंने ही गाया तो 'रंग रसिया', 'धनक' जैसे एलबम में भी उनके स्वरों का उजास बिखरा है। 

वह गाते हैं तो लगता है जैसे धोरों के जीवन से रागअनुराग हो रहा है। कोमल कोठारी के शब्दों में कहूं तो लोक संगीत हमारे सामाजिक संबंधों का संगीतमय इतिहास है। अनवर खान को सुनेंगे तो लगेगा, इस इतिहास को अपने स्वरों से वह जीवंत कर रहे हैं।

Friday, October 7, 2022

दूरदर्शन, राजस्थान का विशेष कार्यक्रम 'संवाद'

दूरदर्शन, राजस्थान ने कला—संस्कृति पर केन्द्रित एक खास कार्यक्रम की शुरूआत की है। इस विशेष कार्यक्रम 'संवाद' की प्रस्तुति—संयोजन करते लगा, लोक में आलोक की छटाएं यत्र—तत्र—सर्वत्र बिखरी हुई है। 


इस कार्यक्रम की पहली कड़ी 23 सितम्बर 2022 को प्रसारित हुई। डीडी राजस्थान स्टूडियो में दर्शकों—श्रोताओं के साथ इस कार्यक्रम में लब्धप्रतिष्ठि लोक कलाकार पद्मश्री अनवर खान से मुलाकात का सुयोग हुआ। 23 सितम्बर 2022 की रात्रि 9 बजे कार्यक्रम जब प्रसारित हुआ तो इसे बहुत सराहना मिली।

डीडी राजस्थान के इस विशिष्ट कार्यक्र्म को आप यहां यू—ट्यूब पर भी देख सकते हैं—

https://youtu.be/yVFb2GidMLg


Saturday, October 1, 2022

विचारोत्तेजक आलेखों की यात्रा

 भास्कर समूह की मासिक पत्रिका 'अहा! जिन्दगी' के अक्टूबर 2022 अंक में 'कला—मन' की परख...

कला—मन विचारोत्तेजक आलेखों की एक यात्रा है। भारतीय कला पर विमर्श का आमंत्रण देते आलेख बार—बार याद दिलाते चलते हैं कि हम अपने ही कला संसार से दूर होते जा रहे हैं।...यहां अवसाद से भरे शिकायती लेख नहीं है, जानकारी से भरपूर, सोचने—विचारने को विवश करते शब्द हैं। ज्ञान की प्रस्तुति, ज्ञानार्जन को आमंत्रित करती है।