ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, October 22, 2022

अवनीन्द्रनाथ की कलाकृति 'तिष्यरक्षिता'

 "...संवेदना की आंख में कला प्रायः इतिहास-संदर्भ मुक्त होती है। इतिहास असल में तथ्यों पर निर्भर भौतिकवादी विचार है जबकि कलाएं अंतर्मन का विचार-उजास है।...अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की कलाकृति 'तिष्यरक्षिता' एक दृष्टि में कामुक चरित्र को दर्शाती है पर चित्र का सच यही नहीं है।... कलाकृतियों को बनी-बनाई धारणाओं को उनसे जुड़े प्रचलित संदर्भों से मुक्त देखेंगे तो भारतीय कला का और भी बहुत कुछ महत्वपूर्ण हम पा सकेंगें। .."

राजस्थान पत्रिका, 22 अक्टूबर 2022


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