राजस्थान पत्रिका में आज 'कला—मन' की समीक्षा...
"...लेखक एक ऐसा आकाश दिखाते हैं जिसमें तमाम कलाएं समाए हुई है। इसमें सारी कलाओं का गान है, तथ्य और मर्म के बाद। इनको पढ़ने के बाद पाठक वह नहीं रहता जो इस किताब को पढ़ने से पहले तक था। इसके बाद उसका मन भी लेखक का सा मन हो जाता है, कला—मन।"ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Sunday, October 16, 2022
राजस्थान पत्रिका में 'कला—मन' की समीक्षा

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