ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, October 15, 2022

दीप जलाएं जतन से...

 'नवनीत' के अक्टूबर 2022 अंक में...

"... चन्द्रमा की सोलह कलाएं होती है। सोलहवीं कला अमावस्या की अदृश्य कला है। यही अमृता है। अमृता का अर्थ है—समाप्त न होना। दीपावली के जगमगाते दीयों का आलोक हरेक मन को भाता है। सौंदर्य की अद्भुत सृष्टि वहां है। नेत्रों को तृप्ति प्रदान करती हुई। ...दीप पर्व में जीवन को आलोकित करने का मंतव्य गहरे से निहित है। आज से नहीं, युग—युगों से।..."







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