'नवनीत' के अक्टूबर 2022 अंक में...
"... चन्द्रमा की सोलह कलाएं होती है। सोलहवीं कला अमावस्या की अदृश्य कला है। यही अमृता है। अमृता का अर्थ है—समाप्त न होना। दीपावली के जगमगाते दीयों का आलोक हरेक मन को भाता है। सौंदर्य की अद्भुत सृष्टि वहां है। नेत्रों को तृप्ति प्रदान करती हुई। ...दीप पर्व में जीवन को आलोकित करने का मंतव्य गहरे से निहित है। आज से नहीं, युग—युगों से।..."
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