ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, October 1, 2022

विचारोत्तेजक आलेखों की यात्रा

 भास्कर समूह की मासिक पत्रिका 'अहा! जिन्दगी' के अक्टूबर 2022 अंक में 'कला—मन' की परख...

कला—मन विचारोत्तेजक आलेखों की एक यात्रा है। भारतीय कला पर विमर्श का आमंत्रण देते आलेख बार—बार याद दिलाते चलते हैं कि हम अपने ही कला संसार से दूर होते जा रहे हैं।...यहां अवसाद से भरे शिकायती लेख नहीं है, जानकारी से भरपूर, सोचने—विचारने को विवश करते शब्द हैं। ज्ञान की प्रस्तुति, ज्ञानार्जन को आमंत्रित करती है।



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