लिखने-पढ़ने के आरम्भिक दिनों से ही रांगेय राघव मेरे प्रिय रहे हैं। भाषा, शिल्प और शैली के अनूठेपन में उनका लिखा इतना लयात्मक है कि पढें और बस पढ़ते ही रहें। शब्द-शब्द दृश्यात्मक है उनका लिखा। लोक संवेदनाओं से राग-अनुराग करता। ... यह संयोग ही है कि राजस्थान साहित्य अकादमी के नवनियुक्त अध्यक्ष ने आग्रह कर रांगेय राघव पर ‘मधुमती’ के लिए यह लिखवा लिया। कृतज्ञ हूं! अन्यथा बहुतेरे प्रिय लेखकों पर लिखने के मन का कहां पूरा हो पाता है! रांगेय राघव जी को बहुत पहले पढ़ा था पर जब इस प्रयोजन से फिर से पढ़ने बैठा तो स्मृतियां हरी हो उठी। उनके लिखे को इस आलेख में अंवेरा जरूर है पर वह इस तरह से किसी लिखे में कहां समा सकते हैं! विलक्षण थे वह। उनका समग्र लिखा हुआ भी। जितना उनके लिखे में उतरेंगे, और गहरे उतरते चले जाएंगे...
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