लिखने-पढ़ने के आरम्भिक दिनों से ही रांगेय राघव मेरे प्रिय रहे हैं। भाषा, शिल्प और शैली के अनूठेपन में उनका लिखा इतना लयात्मक है कि पढें और बस पढ़ते ही रहें। शब्द-शब्द दृश्यात्मक है उनका लिखा। लोक संवेदनाओं से राग-अनुराग करता। ... यह संयोग ही है कि राजस्थान साहित्य अकादमी के नवनियुक्त अध्यक्ष ने आग्रह कर रांगेय राघव पर ‘मधुमती’ के लिए यह लिखवा लिया। कृतज्ञ हूं! अन्यथा बहुतेरे प्रिय लेखकों पर लिखने के मन का कहां पूरा हो पाता है! रांगेय राघव जी को बहुत पहले पढ़ा था पर जब इस प्रयोजन से फिर से पढ़ने बैठा तो स्मृतियां हरी हो उठी। उनके लिखे को इस आलेख में अंवेरा जरूर है पर वह इस तरह से किसी लिखे में कहां समा सकते हैं! विलक्षण थे वह। उनका समग्र लिखा हुआ भी। जितना उनके लिखे में उतरेंगे, और गहरे उतरते चले जाएंगे...
ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Monday, September 19, 2022
सांस्कृतिक सरोकारों का विलक्षण लेखन

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