सभ्यता का इतिहास मनुष्य की कल्पनाओं से गढ़ी रचनाओं से अधिक यथार्थ की रूपान्तरणात्मक खोजों में सदा जीवंत हुआ है। पुरातत्व खोजों और उत्खनन में प्राप्त मूर्तियों, चित्र, वास्तुकला आदि से जुड़े तथ्यों ने ही अतीत के विस्मृत अध्यायों से पर्दा उठाया है। सुप्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक दया कृष्ण की महत्वपूर्ण अंग्रेजी पुस्तक है, 'ए प्रोलोजेमेना टू एनी फ्यूचर हिस्टोरियोग्राफी ऑफ कल्चरर्स एण्ड सिविलाइजेशन्स'। इसमें उन्होंने मानव इतिहास को देखने के लिए शिल्प, शास्त्र और पुरूषार्थ के साथ संस्कार को भी जोड़ा है। उनके लिखे के आलोक में यह पाता हूं कि सभ्यताओं के उत्थान और पतन की गहरी दृष्टि असल में जीवन से जुड़े संस्कारों में ही बहुत से स्तरों पर समाई हुई है। जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में इस समय एक माह के लिए 'तुतेनखामुन सिक्रेट्स एण्ड ट्रेजर्स' प्रदर्शनी लगी हुई है। इसे देखा तो लगा, गुम हुई प्राचीन मिस्र की नाइल नदी सभ्यता संस्थापन में यहां जीवंत हुई है।
विश्व के सात अजूबों में मिस्र के पिरामिड भी है। शुष्क जलवायु के कारण मिस्र में शव जल्दी नष्ट नहीं होते इसलिए वहां जीवन की निरंतरता में आस्था रही है। राजा चूंकि वहां देवत्व रूप में शासन करते रहे हैं, उन्हें आभूषणों से सज्जित स्वर्णिम सिंहासन, रथ, घोड़ों, पलंग, मुद्राओं और तमाम अपने ऐश्वर्य के साथ कब्र में दफनाने की परम्परा रही है। सुने—सुनाए इतिहास, पाषाण पर, मिट्टी और पपाईरस यानी रेशे जैसे कागज पर मिली मिस्र की चित्र लिपियों के अध्ययन में जाएंगे तो यह भी पाएंगे कि एक समय में मिस्र की सभ्यता बेहद समृद्ध—संपन्न और कलात्मक रही है। इजिप्ट के कलाकार डॉ.मुस्तफा अलजैबी ने वहां के शासक तुतेनखामुन के जीवन—आलोक में इसी सभ्यता को जवाहर कला केन्द्र में मूर्तिकला, चित्रकला और संस्थापन में जैसे जीवंत किया है।
राजस्थान पत्रिका, 10 सितम्बर 2022
कहते
हैं, तुतेनखामुन की
बहुत कम उम्र
में हत्या हो
गयी थी। ब्रिटिश
पुरातत्वविद् हावर्ड कार्टर ने
1922 में उनकी खोई
हुई संरक्षित कब्र
की खोज की
थी। इस खोज
ने ही वहां
की प्राचीन कलात्मक
परम्पराओं, चित्रलिपि और मूर्तिकला
से जुड़े सौंदर्य
संसार के भी
द्वार नए रूपों
में हमारे सामने
खोले। जवाहर कला
केन्द्र में मिस्र
की सभ्यता से
जुड़ी कला—प्रदर्शनी
इस मायने में
भी महती है
कि इसमें स्वर्ण
और दूसरी धातुओं
की रंगधर्मिता, मूर्तियों
के अनुपात—समानुपात
के साथ रेखीय
अंकन की गहराई
है। सम्राट और
उसकी जीवनचर्या, पशु—पक्षियों, प्रकृति और
जीवन से जुड़े
संदर्भों की कला—प्रस्तुति में रमते
यह भी लगता
है कि मिस्र
का सोया हुआ
प्राचीन इतिहास जैसे हमारी
आंखो के समक्ष
जाग उठा है।
प्राचीन मकबरे को लकड़ी,
रेजिन और सोने
की ढलाई जैसी
विभिन्न तकनीकों का उपयोग
करके यहां पुनर्नवा
किया गया है।
मिस्र को सोने के गहने पहनने वाली पहली सभ्यताओं में से भी एक माना जाता है। शासक तुतेनखामुन का नाम भी चन्द्रमा की कला से जुड़ा है। तुतेनखामुन माने अमुन की परछाई। अमुन मिस्र के देवता का नाम है। यही अमुन हमारा चन्द्रमा है।
यह महज संयोग ही नहीं है कि वास्तुकार चार्ल्स कोरिया ने जवाहर कला केन्द्र का निर्माण नवग्रहों से जुड़ी कलाकृतियों के संदर्भ सहेजते किया था। यहां कॉफी हाउस में जब भी जाना होता है, टेबल्स में चंद्रमा की घटती—बढ़ती कलाओं को रूपायित पाता हूं। उसी जवाहर कला केन्द्र में तुतेनखामुन यानी चन्द्रमा की परछाई के आलोक में मिस्र की सभ्यता से जुड़ी कला प्रदर्शनी देखना विरल अनुभव है। इसलिए भी कि ग्रीक, फ़ारसी और असीरियन आक्रमणों ने कभी इस प्राचीन सभ्यता को कभी पूरी तरह से ख़त्म कर दिया था। सोचता हूं, यह कलाएं ही तो हैं, जो इस तरह से किसी सभ्यता और संस्कृति को हममें पुनर्नवा करती है।
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