ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, September 4, 2022

'द प्रिंट' के साथ 'कला—मन' पुस्तक के संदर्भ में संवाद

प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक 'कला—मन' के संदर्भ में 'द प्रिंट' के सुधि पत्रकार श्री शिव पाण्डेय से आज कला लेखन, भारतीय कला दृष्टि, कला समीक्षा से जुड़ी भाषा आदि प्रश्नों के आलोक में संवाद हुआ। कलाओं पर लिखे मेरे वैचारिक निबंधों और पुस्तक 'कला—मन' से जुड़ी इस बातचीत को चाहें तो आप इस लिंक https://www.youtube.com/watch?v=gy9pA8VGlrs पर जाकर यूट्यूब पर देख सकते हैं...






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