'अहा! जिन्दगी' पत्रिका के जून 2017 अंक में किशोरी अमोणकर पर यह आलेख लिखा था। किशोरी अमोणकर का गायन भावो की अतल गहराईयो में ले जाता है। हिंदुस्तानी संगीत में रागों की शुद्धता, परम्परा से मिले संस्कारों के साथ उन्होंने किसी प्रकार का समझौता कभी नहीं किया।... वह गाती तो लगता, स्वरों का उनका ओज सदा के लिए हममें जैेसे बस जाता है। मीरा के गाए उनके पदों में तो शब्द—शब्द उजास और विरल छटाएं हैं।... आज अरसे बाद यह आलेख हाथ लगा है, मन किया आप सबसे यहां साझा कर लूं...
ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Tuesday, November 1, 2022
अंतर्मन संवेदनाओं में स्वरों का ओज

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