'अहा! जिन्दगी' पत्रिका के जून 2017 अंक में किशोरी अमोणकर पर यह आलेख लिखा था। किशोरी अमोणकर का गायन भावो की अतल गहराईयो में ले जाता है। हिंदुस्तानी संगीत में रागों की शुद्धता, परम्परा से मिले संस्कारों के साथ उन्होंने किसी प्रकार का समझौता कभी नहीं किया।... वह गाती तो लगता, स्वरों का उनका ओज सदा के लिए हममें जैेसे बस जाता है। मीरा के गाए उनके पदों में तो शब्द—शब्द उजास और विरल छटाएं हैं।... आज अरसे बाद यह आलेख हाथ लगा है, मन किया आप सबसे यहां साझा कर लूं...
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