ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, November 5, 2022

रंगकर्म की मौलिक दृष्टि

रंगकर्म आंखो का अनुष्ठान है। पर रंगमंच से जुड़े परिवेश की सूक्ष्म सूझ की दृष्टि से हमारे यहां अभी भी अच्छी नाट्यकृतियों का अभाव है। नाट्यालेख बढ़िया हो, यह तो जरूरी है पर नाट्य की मूल जरूरत मंचन की मौलिक दीठ भी है। रतन थियम ने मणिपुरी नाट्य कला को जिस तरह से आगे बढ़ाया ठीक वैसे ही अर्जुनदेव चारण ने हमारे यहां राजस्थानी भाषा की नाट्य परम्परा को अपने तई नया आकाश दिया है।...उनकी अपनी मौलिक रंगयुक्तियां के साथ नाट्य का सधा हुआ ​शिल्प लुभाता है।...

 'राजस्थान पत्रिका' 5-11-2022




No comments:

Post a Comment