रंगकर्म आंखो का अनुष्ठान है। पर रंगमंच से जुड़े परिवेश की सूक्ष्म सूझ की दृष्टि से हमारे यहां अभी भी अच्छी नाट्यकृतियों का अभाव है। नाट्यालेख बढ़िया हो, यह तो जरूरी है पर नाट्य की मूल जरूरत मंचन की मौलिक दीठ भी है। रतन थियम ने मणिपुरी नाट्य कला को जिस तरह से आगे बढ़ाया ठीक वैसे ही अर्जुनदेव चारण ने हमारे यहां राजस्थानी भाषा की नाट्य परम्परा को अपने तई नया आकाश दिया है।...उनकी अपनी मौलिक रंगयुक्तियां के साथ नाट्य का सधा हुआ शिल्प लुभाता है।...
![]() |
'राजस्थान पत्रिका' 5-11-2022 |
No comments:
Post a Comment