ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Thursday, November 29, 2018

दीठ रै पार

बोधि प्रकाशन से प्रकाशित राजस्थानी भाषा के तीसरे काव्य संग्रह 'दीठ रै पार' पर कवि, आलोचक डॉ. मदनगोपाल लढ्ढा की यह दीठ—राजस्थान पत्रिका में ...10 दिसंबर 2017 


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