ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, November 25, 2018

कश्मीर से कन्याकुमारी-अमृत लाल वेगड़ जी का पत्र

 यात्रा संस्मरण की पुस्तक "कश्मीर से कन्याकुमारी" पर नर्मदा के अनथक पदयात्री स्व. अमृत लाल वेगड़ जी ने हस्तलिखित पत्र भेजा था, आपकी नज़र -




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