ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, August 19, 2023

'अमर उजाला', 19 अगस्त 2023
-"छायांकन कहन की दृश्य कला है। इसमें तकनीक ही महत्वपूर्ण नहीं है, छायाकार की छायांकन दीठ महती है। दृश्य को पकड़ते बहुतेरी बार छायाकार उस निःसंग को भी पकड़ता है जिसमें मौन भी बोलने लगता है और तब हजारों-हजार शब्दों में जो नहीं कह सकते, वह एक छायाचित्र कह देता है।... दादा साहब फाल्के कैमरे से सिरजी दुनिया के प्रति इतना अधिक जुनूनी थे कि उन्हें इसके लिए अपनी एक आंख तक गंवानी पड़ी थी। ‘द ग्रोथ ऑफ द प्लांट’ में क्षण—क्षण को उन्होंने कलात्मक ढंग से जिया है। फिल्मो में जो ‘स्पेशल इफेक्ट’ हम देखते हैं, वह उन्हीं की देन है। सत्यजित राय के साथ भी यही था, उन्होंने साधारण विषयों, दृश्य के भी सूक्ष्म ब्योरों के विरल कलात्मक रूप सिरजे हैं। प्रख्यात कलाकार रोरिक ने जो कलाकृतियां सिरजी है, उनमें हिमालय पर पड़ती सूर्य की लालिमा, धूप, छांव, अंधकार और प्रकाश से जुड़े दृश्यों का अद्भुत लोक रंग-रेखाओं में रचा है। इसी आलोक में रमते प्रस्तावित करता हूं, इस बार जब किसी कलात्मक छायाचित्र को देखें तो उसमें भी प्रकृति से जुड़े ऐसे ही मोहक छंदो की तलाश करें। बहुत कुछ नया, अभूतपूर्व आप पाएंगे ही।

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