ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, August 19, 2023

कलाओं का छंद संस्कार

 

 राजस्थान पत्रिका, 12 अगस्त 2023
"छंद कलाओ का सहज गुण है।.. कालपरक रूपों में छंद संगीत, नृत्य काव्य आदि कलाओं में तो देशपरक में वह मूर्ति, चित्र आदि रूपों में स्वयमेव सधता है। 

संस्कृत वाङ्मय में लय को बताने के लिये छन्द शब्द का प्रयोग मिलता है। 

लय से ही कलाओं में रंजकता आती है। लय क्या है? काल का अनुभूत प्रवाह ही तो! जिस तरह काल की गति मंद-तीव्र होती है, लय का भी वैसा ही प्रवाह होता है। दुःख, विरह शांति, विश्रांति में काल की गति धीमी, विलम्बित और भय, डर आदि में तीव्र, द्रुत होती जाती है।

कलाओं की चर्चा संग छंद की बात आपसे यहां इसलिए की है कि उसके मूल में हम अपनी कला-अन्तर्दृष्टि की ओर अग्रसर हो सकें। 

हुआ बिल्कुल उलट है। हमने कलाओं में अपनी स्वयं की दृष्टि की बजाय पश्चिम की अवधारणाएं ओढ़ ली है।... 

पर पश्चिम हमें आज भी कलाओं में संकुचित अर्थ में देखता है। भारतीय संगीत का अध्ययन वहां ’एथ्नोम्यूजिकॉलोजी’ से कराया जाता है। ...

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