ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Monday, April 22, 2024

लोकतंत्र के पर्व में सांस्कृतिक होने की ओर अग्रसर हों

 संस्कृति के लोकतंत्रीकरण की ओर हम प्रेरित हों। शासन में संस्कृति के प्रति आस्था बढे।

... सांस्कृतिक संस्थाएं, संस्कृति के सरोकारों की उपस्थिति से ही असमानताएं पूरी तरह से मिट सकती है।

पत्रिका, 20 अप्रैल, 2024


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