"...भारतीय दृष्टि इस पुस्तक का वह प्राणतत्व है जो इसे जिज्ञासुओं के लिए अनिवार्यत: पठनीय बना देता है।
...मूल्यवान और गंभीर कृति।...
कुल 23 अत्यन्त चिंतनपरक निबंधों में लेखक ने भारतीय कलाओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रामाणिक दृष्टि से विचार किया है।..."
--योगेन्द्र नाथ शर्मा 'अरुण', वरिष्ठ आलोचक
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