नवनीत, फरवरी 2024 |
"कलाओं की अंतर्दृष्टि" पुस्तक पर ...
"...ब्रिटिश काल के बाद कलाओं में पश्चिम के सिद्धान्तों, अवधारणाओं में ही कलाएं समझी और परखी जाती रही है।
यह पुस्तक इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि इसमें कलाओं की भारतीय अंतर्दृष्टि पर मौलिक चिंतन और मनन है।
भारतीय मूर्तिकला, शिल्प, चित्रकला, संगीत, नृत्य, नाट्य, वास्तु कलाओं के सूक्ष्म तत्वों में ले जाते हुए लेखक इनमें निहित आंतरिक उजास से पाठकों को जोड़ता है।
यह पुस्तक भरतमुनि के नाट्यशास्त्र, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, शुक्रनीति आदि के महत्वपूर्ण संदर्भ लिए है।
कलाओं में सौंदर्य बोध, कलाओं में श्लील-अश्लील, मूर्त-अमूर्त, योग के राग बोध, लोक और शास्त्रीय कलाओं के भेद के साथ ही इसमें कलाओं के अन्तः संबंधों और कला-संस्कृति की विचार विरासत पर लेखक की अपनी मौलिक स्थापनाएं हैं।"
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