ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Wednesday, March 13, 2024
जीवन में क्यों है जरूरत कला—संस्कृति की
'राजस्थान पत्रिका' में इस बार...
कला और संस्कृति दो शब्द हैं पर दोनों में महीन भेद है।
संस्कृति जीवन जीने का ढंग, हमारा स्वभाव है और कलाएं उसकी अभिव्यक्ति...
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