ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Friday, May 10, 2024

पुस्तक संस्कृति' में 'कलाओं की अंतर्दृष्टि'


'...कलाओं की अंतर्दृष्टि' एक मौलिक रचना है, जिसे शब्दों की परिधि में समीक्षा के रूप में बांधा जाना संभव नहीं है। यह पुस्तक साहित्य, कला, संस्कृति आदि में रूचि रखने वाले पाठकों, शिक्षकों और शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। पुस्तक की भाषा इतनी सहज और सरल है कि पाठक की तारतम्यता आरंभ से अंत तक बनी रहती है।"


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