ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, August 10, 2024

ध्यान के ज्ञान से जुड़ी कलाकृतियां


न्यूयॉर्क टाइम्स की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर के युवाओं में बीते जमाने की बात रही सुलेखन कला या कहें कैलिग्राफी के प्रति रुचि तेजी से बढ़ रही है। सुलेखन दृश्य कला है। इसमें कलम, स्याही, ब्रश से अक्षरों में डिजाइन कर कुछ कहा जाता है। माने जितना दृश्य महत्वपूर्ण है, उतना ही अदृश्य भी है। मैं समझता हूं, युवाओं में यह सुलेखन की रूचि—भर नहीं है। यह ध्यान के ज्ञान से जोड़ने की प्रक्रिया है।
राजस्थान पत्रिका, 10 अगस्त 2024

कलाओं में बड़ा यथार्थ वह नहीं होता है जो दिखाई देता हैवह होता है जो देखने के बाद मन में घटता है। वैचारिक रूप से संपन्न कलाकृतियां इसीलिए आकृष्ट करती है। कुछ दिन पहले कोलकाता जाना हुआ। यह देखकर सुखद अचरज हुआ कि देश के ख्यात कलाकार युसूफ की कलाकृतियों को देखने के लिए महानगर का बहुत बड़ा युवा वर्ग एकत्र हुआ था। कुछ समय के अंतराल में ही उनकी कलाकृतियों को मुंबईलखनऊचेन्नईपांडिचेरीकोलकाता आदि शहरों में प्रदर्शित किया जा रहा है। महत्वपूर्ण यह भी है कि कला दीर्घाओं में हर बार उनकी नई कलाकृतियां प्रदर्शित होती रही है।

मसलन कोलकाता की आकृति आर्ट गैलरी में युसूफ की कलाकृतियां सुलेखन की भांति अर्थ की विरल छटाएं बिखेरती लुभा रही थी। प्रकृति और जीवन वहां एकाकार हो रहा था। एक कलाकृति में बड़ी सी गर्दन और फिर कोई चेहरा। पर थोड़ा ठहरकरठिठककर देखेंगे तो पाएंगे वृक्ष है। भरी पूरी डालो का। कुछ टेढ़ा हुआ सा। यही होता हैएब्सट्रेक्ट अर्थ के आग्रह से मुक्त होती है। रंगरूप और रेखाएं वहां स्वयंप्रतिष्ठ होकर अर्थ की भांत—भांत की छटाएं रचती है।

युसूफ की कलाकृतियां घूंट घूंट आस्वाद के लिए उकसाती है। वहां जैसे कथा कोलाज हैं। गोल मटोल पृथ्वी इंक से बरती रंग लय में औचक अंडाकार होती दो भागों में विभक्त हों रही है। कड़कती बिजलीपेड़पानीआकाश और गृहनक्षत्रों की बहुतेरी अनुभूतियां इन्हें देखने से होती है। कहीं रंग लहर से निकल स्वयमेव लेटे हुए व्यक्ति की नींद से हमें साक्षात करा रहे हैं तो कहीं टेढ़े और खड़ी लाइन के आकार में इमारतव्यक्तिसीढ़ी और जमीन के टुकड़े संग कहीं कोई कस्बाई जीवन सांस लेता नजर आता है।

युसूफ ने आरंभ में भारत भवन के पूर्व निदेशक जगदीश स्वामीनाथन के साथ आदिवासी कलाओं का निरंतर अन्वेषण किया तो वहां का भी बहुत—कुछ उनकी कला में बाद में समाता चला गया। इसलिए उनके रेखांकनों में आदिवासी जीवनानुभूतियां भी समाई हुई है। पेड़ की शाखाओं और उनसे झरते पत्तों की अनुभूतियों को टेक्सचर में जैसे उन्होंने घोल दिया है। वह कहते भी हैंपेंटिंग जीवंत होती है। इसलिए कि उसमें ऊर्जा होती है। ऊर्जा का कोई एक रूप नहीं होता। वह बदलता रहता है। इसी तरह कला ऊर्जा के रूपाकार ग्रहण कर हमें लुभाती है।

कभी उन्होंने सिलाई मशीनों के मूर्तिशिल्प भी सिरजे। इनमें सिलाई मशीन मनुष्य के हैड में रूपांतरित होती जैसे जीवन से जुड़े द्वन्दों से हमें साक्षात कराती है। बड़ी रोचक कहानी हैइसकी। वह कहते हैंएक दफा हमारे यहां बाढ़ आई तो लोग पलायन करने लगे। मैंने देखाएक व्यक्ति अपने परिजनों को छोड़कर अपनी सिलाई मशीन लिए भागा जा रहा है। मुझे लगासंवेदना गौण हो रही है। आदमी को लगामशीन जरूरी है। इसे बचा लूं। मेरी मूर्तियों में फिर सिलाई मशीन में सर रह गया। धड़ गायब होता चला गया। ऐसे ही कभी उन्होंने नोटेशन शृंखला बनाई। संगीत की ध्वनियां सरीखी रेखाओं की जीवंतता में। युसूफ की कलाकृतियां संवेदना से भरी—पूरी  है। दृश्य आख्यान सरीखी। जो कुछ वहां हैलयात्मक है। एक खास तरह की एकांतिका वहां है। औचक कोई पहाड़ पेड़ में रूपांतरित हो जाता हैपेड़ पहाड़ में। फन फैलाए नाग और उसको मनुष्य की दो बाहों का घेरा जैसे आगे बढ़ने से रोक रहा है। ऐसे ही पत्तियां हैंपेड़ से बिछड़ी पर हवा में ठहरी सी। कला में यही होता हैदृश्य से बड़ी वहां अदृश्य की सत्ता होती है। युसूफ की कलाकृतियां इसका उदाहरण है। युवाओं में कला के जरिए ध्यान के ज्ञान में प्रवेश कराती हुई।