पत्रिका, 21 जून 2025
विष्णुधर्मोत्तर पुराण के ‘चित्रसूत्र’अध्याय में राजा वज्र और मुनि मार्कण्डेय का संवाद है। राजा मुनि से कहते हैं, वह मूर्ति स्थापित करना चाहते हैं। मुनि का जवाब होता है, इसके लिए चित्र का ज्ञान जरूरी है। राजा कहते हैं, वह सीखा दें। मुनि कहते हैं, इसके लिए संगीत की जानकारी तो हो! राजा कहते हैं, तो संगीत के बारे मे बता दें। मुनि फिर कहते हैं, संगीत के लिए आतोद्य यानी वाद्य यंत्रों का ज्ञान जरूरी है। राजा कहते हैं, यह भी जानना चाहूंगा। मुनि फिर कहते हैं, संगीत के लिए नृत्य का ज्ञान जरूरी है। और इस तरह संवाद चलता रहता है। मूल जो निष्कर्ष है, वह यह है कि हरेक कला दूसरी में घुलकर ही पूर्णता को प्राप्त करती है। मुझे लगता है, भारतीय कलाएं इस रूप में योग का ही एक तरह से रागबोध है। कलाओं के अंतर में जाएंगे तो पाएंगे वहां सर्वत्र संधि है। रस का संयोजन है। योग क्या है? चित्तवृतियों का निरोध ही तो! भारतीय कला में कलाकार चित्तवृति का निरोध करके ही तो भाव विशेष का आत्म साक्षात्कार कर दूसरों को कराता है।
ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Saturday, June 21, 2025
भारतीय कला सृष्टि की दृष्टि है योग
Tuesday, June 17, 2025
जीवन योग—संगीत
"...पंडित रविशंकर को सुनते अद्भुत अंतर उजास पाया। तभी सहज प्रश्न उपजा था, 'संगीत में यह अलौकिक प्रभाव आप कैसे लाते हैं?' उनका जवाब था, "संगीत योग साधना है। मैं सितार बजाते खुद समाधिस्थ हो जाता हूं।' ...संगीत जीवन—योग है। जहां गति है, प्रकृति है—वहीं संगीत का योगबोध है। संगीत वाद्य या ध्वनिभर ही तो नहीं है! कल—कल बहती नदी, झर—झर बहते झरने, पक्षियों के कलरव, पत्तों की खड़खड़ाहट में संगीत भरा है। पर इसे सुनने का योग हर किसी के बस का नहीं! अंतर जगेगा तभी मन संगीत की इस योग साधना से जुड़ेगा।...याद है, मीरा के भजन 'जा मत जा रे जोगी' को एक दफा मलिकार्जुन मंसूर के स्वरों में सुना। सुनते लगा, मन अंतर—उजास से नहा उठा है। स्वरों की पुकार, लयबद्ध लघु दोहराव! ऐसे ही कुमार गंधर्व को जब भी कबीर के पद 'उड़ जाएगा हंस अकेला' गाते सुना, मन संसार के असार को हृदय में संजोता समाधिस्थ हुआ है। कुमार गंधर्व ने कबीर के निर्गुण में लोक का उजास घोला है। संगीत में सधे सुर सदा ऐसे ही अंतर्मन संवेदनाओं को जगाते हैं। तो कहें, मन के रीतेपन को भरने का योग है—संगीत!"
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दैनिक जागरण 16 जून 2025 |
Saturday, June 14, 2025
"राजस्थान इन्टरनेशनल सेंटर" में व्याख्यान...
पंडित विश्वमोहन भट्ट जी के सान्निध्य में सुरेन्द्र पाल जोशी कला स्मृति ट्रस्ट ने स्व. जोशी की स्मृतियां संजोने की महती पहल की।