ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Friday, February 1, 2019
केन्द्रीय साहित्य अकादेमी का सर्वोच्च अवार्ड मिलने पर अकादेमी द्वारा प्रकाशित पुस्तिका ...

संस्कृति की नींव तैयार करती है कविता

कलाएं अंतरात्मा की रूप विधान की सृष्टि

लिखना मेना व्यसन

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