राजस्थान पत्रिका, 7 अक्टूबर, 2023
जो कुछ दिख रहा है, जो आपकी अनुभूति है या स्मृतियां हैं, उन्हें यदि लिखे में शब्दों में सपाट बरता जाएगा तो कहन की सघनता महसूस न होगी। लिखे का स्थायी महत्व और उसकी कलात्मकता इसमें है कि कैसे हम अपने सोचे को पाठक का सच बनाते उसका राग अनुराग बनाएं। उनके लिखे के अंग्रेजी में अनुदितअंश ढूंढ—ढूंढ कर पढ़ते यह भी लग रहा है, वह शब्द बरतते उस चुप्पी को भी अनायास स्वर देते हैं जिसमें कोई अपने होने की तलाश करता है। उनके लिखे में—अर्थ एक अचरज, ईश्वर की अंतर्सृष्टि, भरी हुई जगह में मौजूद खालीपन, अणु में व्याप्त परमाणु जैसे वाक्यांश मुहावरे सरीखे हैं। इनमें उनकी वह गहन कला दृष्टि भी जैसे निहित है जिसमें शब्द—ब्रह्म बनता है। शब्दाद्वैतवाद में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। बतौर लेखक चिंतन करता हूं, यह शायद इसलिए है कि मन की जो तीन गतियां है- स्मृति, कल्पना और चिंतन, इनकी जीवंतता शब्द से ही है। जैन पंथ में जल्प और अंतर्जल्प शब्द है। जल्प माने बोला हुआ व्यक्त। जैन मुनि मुंह बंद होने, होंठ स्थिर होने पर भी मन से इतना प्रभावी होते हैं कि होंठ खोलकर भी वह नहीं कहा जा सकता। यही अंतर्जल्प है। ध्वनि विज्ञान के दो भाग हैं, श्रव्य और अश्रव्य। यही आहत और अनाहत नाद है। अनाहत वह जो अंतर्मन से सुना जाए। पर इसके लिए आत्म का अन्वेषण जरूरी है।
उपनिषद कथा है, ऋषि वाजश्रवस विश्वजीत यज्ञ के बाद बूढ़ी एवं बीमार गायों को दान कर रहे थे। यह देख उनके पुत्र नचिकेता को बहुत ग्लानि हुई। नचिकेता ने अपने पिता से पूछा कि आप मुझे दान में किसे देंगे? क्रोध से भरकर वह बोले, मैं तुम्हें यमराज को दूंगा। शब्द चूंकि यज्ञ के समय कहे गए थे, इसलिए नचिकेता को यमराज के पास जाना पड़ा। यमराज अपने स्थान से बाहर थे। नचिकेता ने तीन दिन और रात उनकी प्रतीक्षा की। यमराज लौटे तो नचिकेता के धीरज और वचनबद्धता से प्रसन्न हो उसे वह तीन वर मांगने को कहते हैं। नचिकेता ने पहला वर पिता द्वारा उन्हें स्वीकार करने और उनका क्रोध शांत होने का मांगा। दूसरा वर स्वर्ग में अनवरत स्वर्ण अग्नि के रहस्य जानने का मांगा। यम ने तथास्तु कहा। तीसरा वर नचिकेता ने ब्रह्म का रहस्य समझाने का मांगा। यमराज ने नचिकेता को सारे सुख—वैभव प्रदान करने, पृथ्वी का एकछत्र राज देने आदि का प्रलोभन दिया पर नचिकेता न माना। अंतत: यमराज ने यह मानकर की वह कामनाओं से मुक्त हो गया है, उसे ब्रह्म का रहस्य बताया। ब्रह्म माने परमज्ञान। आत्म खोज प्रक्रिया। अद्वैत कहता है—ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या। माने ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या। सच-झूठ से परे आत्म अन्वेषण में ऐषणाओं से मुक्त हो जाते हैं। शब्द को ब्रह्म इसीलिए कहा गया है कि उसके जरिए लेखक अंतर-उजास रचता है। यही कला है। लिखना बहुत सरल मान लिया गया है, पर विचारें यह शब्दों को ज्यों का त्यों धरना नहीं है। लेखक शब्द शब्द उजास में रमकर अर्थ अनंतता का नाद करता है, तभी शब्द ब्रह्म बनता है। यही कला अन्वेषण है।
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