ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, May 10, 2014

"रंगनाद" की समीक्षा "कला दीर्घा" में

संगीत, नृत्य, चित्रकला एवं छायांकन पर आलोचनात्मक निबंधों की पुस्तक "रंगनाद" की समीक्षा लखनऊ से प्रकाशित दृशय कलाओं की पत्रिका "कला दीर्घा" में संपादक, कलाकार डॉ अवधेश मिश्र ने की है. आप भी आस्वाद करें-


2 comments:

  1. सर जी हम लोग बहुत प्रयास करते हैं मगर यह चीजें हम लोगों तक उपलब्ध नहीं हो पाती। यद्यपि हमारा क्षेत्र ब्लैक पॉटरी के लिए विश्व प्रसिद्ध है किंतु काला पत्र-पत्रिकाओं के संबंध में अति पिछड़ा हुआ है मैंने बहुत प्रयास किया की डाक सेवा से ही उपलब्ध हो सके किंतु यह प्रयास भी असफल हो जाते हैं आप सभी से निवेदन है कि उचित मार्गदर्शन करें मैं आजमगढ़ से ज्ञानेंद्र......८२९९५३३२५२

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