"अनिल विश्वास ने कहा, 'तुम गाते भी हो?'
जवाब में तलत ने गीत गाकर उन्हें सुनाया। उनकी आवाज का कंपन और मखमली अहसास उन्हें इस कदर भाया कि बाकायदा उनके लिए उन्होंने एक गीत की धुन कंपोज की। तलत महमूद आए तो उन्हें गीत गाने को कहा। तलत संभलकर गीत गाने लगे। अनिल दा ने बीच में ही टोका, 'भाई तु कौन है?'
तलत चौंक कर बोले, 'क्यों दादा गलती हो गई?"
गलती! अरे वह तलत महमूद किधर है जिसे मैंने कल सुना था..."
अनिल विश्वास ने यह वाकया सुनाने के साथ फिल्म संगीत से जुडे ऐसे ही और भी किस्से सुनाए थे। गीत लेखन, गायन, धुन निर्माण आदि के अर्न्तनिहित बहुत सा फिल्म पत्रकारिता के दौरान शायद इसीलिए संजो पाया कि जुनून की हद तक तब फिल्म संगीत से लगाव था। लगाव आज भी है पर अब वह बात कहां हां शीघ्र आ रही 'सुर जो सजे' पुस्तक में ऐसी ही बहुतेरी यादों का वातायन आपके लिए भी खुलेगा ही...
जवाब में तलत ने गीत गाकर उन्हें सुनाया। उनकी आवाज का कंपन और मखमली अहसास उन्हें इस कदर भाया कि बाकायदा उनके लिए उन्होंने एक गीत की धुन कंपोज की। तलत महमूद आए तो उन्हें गीत गाने को कहा। तलत संभलकर गीत गाने लगे। अनिल दा ने बीच में ही टोका, 'भाई तु कौन है?'
तलत चौंक कर बोले, 'क्यों दादा गलती हो गई?"
गलती! अरे वह तलत महमूद किधर है जिसे मैंने कल सुना था..."
अनिल विश्वास ने यह वाकया सुनाने के साथ फिल्म संगीत से जुडे ऐसे ही और भी किस्से सुनाए थे। गीत लेखन, गायन, धुन निर्माण आदि के अर्न्तनिहित बहुत सा फिल्म पत्रकारिता के दौरान शायद इसीलिए संजो पाया कि जुनून की हद तक तब फिल्म संगीत से लगाव था। लगाव आज भी है पर अब वह बात कहां हां शीघ्र आ रही 'सुर जो सजे' पुस्तक में ऐसी ही बहुतेरी यादों का वातायन आपके लिए भी खुलेगा ही...
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